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आर्य समाज की स्थापना किसने की? इसका लक्ष्य क्या था? आईएएस, 2000

  • आर्य समाज की स्थापना 1875 ई. में स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में की थी। तीन वर्ष बाद लाहौर में इसके मुख्यालय की स्थापना की गई। आर्य समाज के तीन प्रमुख उद्देश्य थे-
  • पहला, यह वेदों के मूल विचार को पुनर्जीवित करना चाहता था। 
  • दूसरा, यह समकालीन भारतीयों को देश के वैदिक अतीत के गौरवमय आदर्शों से प्रेरित करना चाहता था। 
  • तीसरा, यह ईसाई मिशनरियों के अतिक्रमण के विरुद्ध भारत के लोगों को अपनी संस्कृति के मूलाधार पर संगठित करना चाहता था। 
  • इन उद्देश्यों के साथ आर्य समाज शीघ्र ही शराब पीने, जात-पांत, मूर्तिपूजा और बाल-विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध खड़ा हो गया। इसके अतिरिक्त, इसने नारी शिक्षा, विधवा-पुनर्विवाह और सभी प्रकार के लोकोपकारी कार्यों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। स्वामी दयानंद ने गैर हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में परिवर्तित करने के लिए एक ‘शुद्धि आंदोलन’ भी चलाया। परंतु आर्य समाज ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में किया। 
  • वैदिक आदर्शों पर आधारित बड़ी संख्या में गुरुकुल स्थापित किये गये। इन संस्थानों में न केवल विविध विज्ञानों तथा कला विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता था, बल्कि ये तीव्र राष्ट्रवाद के केंद्र भी बन गये। इस प्रकार आर्य समाज ने धार्मिक एवं सामाजिक सुधार के साथ-साथ शिक्षा एवं राष्ट्रवाद के विकास के लिए भी कार्य किये।



आधुनिक भारत के निर्माण में ईश्वरचंद्र विद्यासागर के योगदान का आकलन कीजिए?

  • 19वीं शताब्दी के समाज सुधारकों और शिक्षाविदों में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का स्थान प्रमुख व्यक्तियों में से है। राजाराम मोहन राय की भांति उन्होंने समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में अदम्य साहस औ कठोर परिश्रम का परिचय दिया। 
  • महिलाओं की सामाजिक दशा सुधारने के लिए बड़े प्रयत्न किये। विधवा पुनर्विवाह के लिए समूचे देश में आंदोलन चलाया और 1856 में इसको कानूनी मान्यता दिलायी। उसके अलावा उन्होंने बाल-विवाह और बहुविवाह का विरोध किया। शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये। 
  • महिलाओं में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई विद्यालयों की स्थापना भी करवायी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर एक महान शिक्षाविद् सुधारक के साथ अत्यंत दयावान और सहृदयी व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन एवं कृत्यों से देशवासियों को प्रेरित किया।


स्वामी विवेकानंद को सहज ही भारतीय राष्ट्रीयता का जनक कहा जा सकता है?

  • स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीयता के पोषक थे। उन्होंने भारतवासियों में आत्मविश्वास की भावना पैदा की, दुर्बलता को पाप बतायां देश नवयुवकों को आह्वान किया कि उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो। स्वामीजी ने अपने लेखों और भाषणों द्वारा नयी पीढ़ी में अपने भूत के प्रति आत्मगौरव की भावना जगायी और भारतीय संस्कृति में नया विश्वास पैदा किया। इन्होंने पश्चिम के अंधानुकरण की कड़ी अलोचना की और भारतवासियों को गर्व से भारतीय कहने के लिए प्रेरित किया। 
  • स्वामीजी ने हिन्दू धर्म के उन मान्यताओं पर चोट किया, जो समाज को बांटता था। जातिप्रथा, छुआछूत और अन्य कुरीतियों को समाप्त करने और नारी सम्मान, नारी शिक्षा के उत्थान के लिए स्वामीजी ने अथक प्रयास किया। इससे भारतीय राष्ट्रीयता को नया रूप मिला। अतः सहज ही स्वामीजी भारतीय राष्ट्रीयता के जनक थे।


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