भारतीय शास्त्रीय नृत्य

भारतीय शास्त्रीय नृत्य

  • भारत में नृत्य की 2000 वर्ष पुरानी अक्षुण्ण परंपरा रही है। इसकी विषयवस्तु, पुराणों, आख्यानों और प्राचीन साहित्य पर आधारित है। 
  • भारतीय नृत्य के दो प्रमुख प्रकार हैं - शास्त्रीय और लोक नृत्य।
  • शास्त्रीय नृत्य प्राचीन ग्रंथों पर आधारित है और उसके विभिन्न रूपों की प्रस्तुति के संबंध में काफी कड़े नियम हैं।

भरतनाट्यम -
भरतनाट्यम

  • भरतनाट्यम तमिलनाडु का प्रसिद्ध नृत्य है। 
  • यह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है। इसका विकास और आविर्भाव दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियों द्वारा हुआ था। 
  • भरतनाट्यम का वर्तमान रूप पोन्नैया पिल्लै बंधुओं ने विकसित किया। यह महिलाओं द्वारा प्रदर्शित गायन नृत्य है। 
  • भाव, राग और ताल इस नृत्य के तीन तत्त्व है। यह अक्सर एक गायन के साथ प्रारंभ किया जाता है। इसके प्रारूप है - अलारिप्पु (वंदना), जाति स्वरूप (स्वर सम्मिश्रण), शब्दम (स्वर एवं गीत), जावलियां (श्रृंगारिक) और तिल्लाना (शुद्ध नृत्य)।
  • भरतनाट्यम से संबंधित व्यक्ति - रूक्मिणी देवी, बाला सरस्वती, यामिनी कृष्णमूर्ति, इन्द्रानी रहमान, सोनल मानसिंह, पद्मा सुब्रह्मण्यम, स्वप्न सुंदरी, अरुण्डेल, एस.के. सरोज, ई. कृष्णाअय्यर, रामगोपाल, लीला सक्सेना, मृणालिनी साराभाई, रोहिंगटन कामा, कोमला करदन, मालविका लारूक्कई, वैजयंतीमाला।
कथकली -
कथकली

  • कथकली केरल का सबसे परिष्कृत और विस्तृत नियमावली नृत्य शैली है। यह एक मूक नृत्य है, जिसमें नर्तक केवल हस्तमुद्राओं, चेहरे के हाव-भावों एवं नृत्य द्वारा अपने भावों में हिंदू पौराणिक कथाओं के मानवीय गुणों के विषय में बताते हैं। 
  • कथकली की कथाओं में मात्र महामानव, देव व दानव और पशु होते हैं। कौन-सा पात्र किस वर्ग का है, इसकी पहचान उसके ढंग से की जाती है। 
  • उदाहरण: हरे रंग की मुख सज्जा, कुलीनता, सम्मान, वीरता और उच्च गुणों का प्रतीक है। 
  • पात्रों का एक अन्य वर्गीकरण ताड़ी (दाढ़ी) कहलाता है। इस नृत्य में वेशभूषा अधिक खर्चीली एवं रंग-बिरंगी होती है, जबकि वाद्य मंडल साधारण होता है। जैसे ढोल, मंजीरा, करताल। 
  • कथकली का जन्म केरल के राजदरबारों में हुआ। आज की कथकली का प्रेरणा स्रोत कवि वल्लतोल को माना जाता है। यह पुरुष प्रधान नृत्य है।
  • प्रमुख नृत्यक:- वल्लतोल, नारायण मेनन, कृष्ण नायर, भारती शिवाजी, रामगोपाल, शांताराव, उदयशंकर, कृष्णन कुट्टी, आनंद शिवरामन।
कुचिपुड़ी:-
कुचिपुड़ी

  • कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश की नृत्य नाटिका है। इसकी विषय-वस्तु रामायण तथा महाभारत आदि से ली गयी है। कुचिपुड़ी नृत्य का आधार भागवत एवं पुराण हैं।
  • यह नृत्य, नृत्य और अभिनय का मिश्रित स्वरूप है। यह पुरुषों का नृत्य है। हाल के वर्षों में स्त्रियों ने भी इस नृत्य में प्रवेश किया है, किंतु वे प्राय एकल नृत्य ही करती है। यह नृत्य रात्रि में खुले मैदान में प्रदश्रित किया जाता है। इसके नियम नाट्यशास्त्र के अनुरूप हैं ओर इसमें अनुचालन पर जोर दिया जाता है। 
  • प्रमुख नृत्यक - वेम्पत्ति सत्यनारायण, वेम्पट्टि चिन्नसत्यम, राजा तथा राधा रेड्डी, यामिनी कृष्णमर्ति, लक्ष्मी नारायण शास्त्री, चिंताकृष्णमूर्ति।

कत्थक:-
कत्थक

  • कत्थक उत्तर भारत का मुख्य शास्त्रीय नृत्य है। जिसका विकास भारतीय संस्कृति पर मुगलों के प्रभावों से हुआ। कत्थक का मूल आधार महाकाव्यों की कथाएं हैं। इसका केंद्र जयपुर, लखनऊ तथा बनारस है। 
  • कत्थक एक नियमबद्ध शुद्ध नृत्य है, जिसमें पूरा बल लय पर दिया जाता है। इन लयबद्ध अवस्थाओं को तत्कार, पलटा, तोड़ा, परन, आमद और परन कहा जाता है। चूंकि यह नृत्य भगवान कृष्ण द्वारा किया गया था, इसलिए इसे नटवरी नृत्य भी कहते है।

प्रमुख नृत्यकार

  • बिन्दा दीन महाराज, कालकादीन, अच्छन महाराज, गोपीकृष्ण, बिरजू महाराज, लच्छू महाराज, सितारा देवी सुखदेव महाराज, भारती गुप्ता, मालविका सरकार दमयन्ती जोशी।


ओडिसी:-
  • उड़ीसा का लोकप्रिय नृत्य
  • यह नृत्य पहले मंदिरों में होता था, किंतु अब कलाकार इसका प्रदर्शन बहुविध कर रहे हैं। यह नृत्य अत्यंत शालीन एवं सुसंस्कृत है और भंगी और करण इसके प्रमुख तत्त्व हैं। मूल मुद्राओं को भंगी कहा जाता है और नृत्य की मूल इकाई को करण कहते हैं। इसके स्वरूप को करण कहते हैं। इसके स्वरूप के विभिन्न रूपों में भूमि-प्रमाण, बाद, पल्लवी और अष्टपदी जैसी हल्की मदें सम्मिलित हैं। इस नृत्य का मुख्य भाव समर्पण एवं आराधना है। 
  • भगवान के प्रति भक्ति भावना इस नृत्य शैली के माध्यम से व्यक्त की जाती है। 

प्रमुख कलाकार -

  • श्रीमती संयुक्ता पाणिग्रही, इन्द्राणी रहमान, केलुचरन महापात्र, कालीचंद, प्रियंवदा मोहन्ती, माघवी मुद्गल, रंजना हेनियल्स, मिनाती दास।


मणिपुरी:-

  • मणिपुरी  नृत्य मणिपुर का है और इसकी शैली कोमल एवं प्रतीकात्मक है। 
  • इस नृत्य के द्वारा प्रकृति के विभिन्न परिवर्तनों को दर्शाया जाता है। जैसे बदलते मौसम, बसंत, गर्मी इत्यादि। 
  • नृत्य शैली प्रायः आनुष्ठानिक है। इसमें वस्त्र रंग-बिरंगे होते हैं और संगीत में एक अनूठा पुरातन आकर्षण हे। 
  • लाई हराओबा और रासलीला का अभिनय होता है।
  • लाई हराओबा में सृष्टि के सृजन का और रासलीला में कृष्ण की लीलाओं का निरूपण होता है। ढोल एक महत्त्वपूर्ण वाद्य यंत्र है। प्रत्येक प्रदर्शन में पूनंग चोलोम अनिवार्य होता है। झांझ के साथ करतार चोलोम एक अन्य प्रेरक अभिनय है।
  • प्रमुख कलाकार - झावेरी बहनें, रीता देवी, सविता मेहता, निर्मला मेहता, थंबल यैमा, कलावती देवी।

मोहिनीअट्टम:-

  • मोहनीअट्टम केरल का मुख्य नृत्य है। यह देवदासी नृत्य है। यह देवदासी नृत्यों की ही एक शैली है, जो क्षीर सागर मंथन और भस्मासुर वध के प्रसंगों से प्रेरित है। यह मूलतः एकल नृत्य है। 
  • कलाकार - भारती शिवाजी, कल्याणी कुट्टीअम्मा, श्रीदेवी, तारा निडुगाड़ी, तंकमणि, के. कल्याणी अम्मा, कनक टेले, रागिनी देवी, सेशन मजूमदार।

यक्षगान:-

  • यह कर्नाटक का नृत्य है और इसका स्रोत ग्रामीण है। इसमें नृत्य और नाट्य का मिश्रण है। इसकी आत्मा ‘गान’ अर्थात् संगीत है। भाषा कन्नड़ है और विषय हिंदू महाकाव्यों पर आधारित है। इसमें वेशभूषा लगभग वैसी ही होती है जैसी कथकली में होती है।
  • लगभग 400 वर्षों से प्रचलित इस नृत्य की आत्मा गान अर्थात संगीत है। इसमें सूत्रधार तथा विदूषक मुख्य भूमिका निभाते हैं।

छाऊं नृत्य:-

  • यह नृत्य बंगाल में पुरूलिया, बिहार में सरई केला एवं उड़ीसा में मयूरभंज छऊं के नाम से जाना जाता है। 
  • सिर्फ पुरूलिया और सरई केला छऊं में ही मुखौटा का प्रयोग किया जाता है। इसका आयोजन चैत्र पर्व पर किया जाता है। 
  • इसका आयोजन आदिवासी खेतिहर खुशहाली एवं शिकार के समय देवी-देवताओं की स्तुति हेतु करते हैं। 
  • इस नृत्य में प्रत्येक अंग का प्रदर्शन अलग ढंग से तोड़-मरोड़ कर किया जाता है जिससे तन की भावना अभिव्यक्ति हो सके। इस नृत्य शैली में 16 प्रकार के श्रृंगार का प्रदर्शन किया जाता है। यह मूलतः पुरूषों का नृत्य है जिसे बाद में स्त्रियों ने भी अपनाया। यह नृत्य काफी उछल कूद से पूर्ण होता है। 
  • इसे शास्त्रीय रूप प्रदान करने में राजा विजय प्रताप सिंह का योगदान महत्त्वपूर्ण है। 




Post a Comment

0 Comments