History
स्वराज पार्टी की स्थापना
- स्थापनाः 1 मार्च 1923
- संस्थापकः चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू
- स्थानः इलाहाबाद
- - असहयोग आन्दोलन की समाप्ति पर कांग्रेस के नेता दो भागों में बट गए। 1919 ई. के भारत शासन अधिनियम द्वारा घोषित विधान परिषदों के चुनाव में भाग लिया जाय या नहीं।
- - चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने इन सभाओं में प्रवेश कर असहयोग करने की बात रखी। ये लोग परिवर्तनवादी कहलाए।
- - 1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों का कांग्रेस ने गांधीजी के निर्देशानुसार बहिष्कार किया था, 1920 के चुनावों में हिस्सा नहीं लिया।
- - 1918 में कांग्रेस से अलग हुए अति उदारवादी नेता जिसके मुखिया सुरेन्द्र नाथ बनर्जी थे, नेशनल लिबरल फेडरेशन की स्थापना की थी।
- - जून 1922 में कांग्रेस ने अपनी भावी रणनीति हेतु ‘सविनय अवज्ञा जांच समिति’ की स्थापना की जिसके सदस्यों में शामिल थे- पं. मोतीलाल नेहरू, डॉ. अंसारी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, विट्ठलभाई पटेल और कस्तूरी रंगा, समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे तथा प्रतिवेदन पं. मोतीलाल नेहरू ने तैयार किया था।
- - 1922 के गया में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में अपने गुट की हार स्वीकारते हुए चितरंजन दास ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से और मोतीलाल ने महामंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
- - मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास के 1923 के चुनावों के माध्यम से विधानमण्डल में पहुंचने की योजना को 1922 के कांग्रेस के गया अधिवेशन में बहुमत के साथ अस्वीकार कर दिया गया।
- - गया कांग्रेस दिसम्बर 1922 के अध्यक्ष सी. आर. दास थे।
- - राष्ट्रीय आंदोलन की प्रगति को बनाये रखने के लिए कांग्रेस को विधान मण्डलों में प्रवेश कर उसके भीतर से राजनीतिक लड़ाई लड़ने के विचार प्रस्तुत किया।
- - उनके अनुसार विधान परिषदों द्वारा हम जनता की आवाज और मांगों को सरकार तक पहुंचा सकते हैं और इस तरह से राष्ट्रीय आन्दोलन को जिन्दा रख सकते हैं।
- - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, बल्लभ भाई पटेल, डॉ. अंसारी, एन.जी.रंगा, आयंगर आदि नेताओं ने परिषदों में प्रवेश करने की नीति का विरोध किया। ये लोग अपरिवर्तनवादी कहलाए।
- - मार्च, 1923 ई. में इलाहाबाद में अपने समर्थकों का अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाया और एक राजनीतिक पार्टी ‘कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी’ की स्थापना की।
- - अध्यक्ष - चितरंजन दास
- स्चिव - मोतीलाल नेहरू
- - अपरिवर्तनवादियों तथा स्वराजवादियों में बढ़ती हुई कटुता को दूर करने के लिए सितम्बर 1923 ई. में मौलाना आजाद की अध्यक्षता में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया।
- - इसमें कांग्रेस ने विधानमण्डलों में प्रवेश के कार्यक्रमों को स्वीकार कर लिया। स्वराजियों ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यों को स्वीकारा।
- - केन्द्रीय विधानमण्डल में स्वराजवादियों के नेता मोतीलाल नेहरू थे।
- - स्वराजियों को पं. मदनमोहन मालवीय, एम.आर. जयकर, विट्ठल भाई पटेल जैसे राष्ट्रवादियों का समर्थन प्राप्त था।
- - नवंबर 1923 के चुनावों में स्वराजियों ने हिस्सा लेकर केन्द्रीय विधानमण्डलकी 101 निर्वाचित सीटों में कांग्रेस ने 42 पर कब्जा कर लिया।
- - प्रांतीय विधानमण्डलों में स्वराजियों का मध्यप्रांत में स्पष्ट बहुमत, बंगाल में सबसे बड़े दल के रूप में तथा बंबई एवं उत्तर प्रदेश में संतोषजनक सफलता मिली।
- मद्रास और पंजाब में सफलता नहीं मिली। पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-
- शीघ्रातिशीघ्र डोमिनियन स्टेट्स प्राप्त करना।
- पूर्ण प्रांतीय स्वायत्तता और
- सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करना।
- स्वराजियों ने केन्द्रीय एवं प्रान्तीय विधान परिषदों में प्रवेश कर महत्त्वपूर्ण कार्य किया जिनमें प्रमुख कार्य इस प्रकार थे-
- 1919 के अधिनियम की जांच हेतु ‘मुडिमैन’ को नियुक्त करवाना
- दमनात्मक कानूनों को समाप्त करवाने के लिए संघर्ष
- कपास पर लगने वाले उत्पाद शुल्क की समाप्ति नमक कर में कटौती
- श्रमिकों की स्थिति को बेहतर बनाना, मजदूर संघों की सुरक्षा आदि।
- - 1924 से 1926 के मध्य स्वराज दल ने बजट को अस्वीकृत कर सरकारी अधिनियम का विरोध किया।
- - 1924 ई. में ‘ली कमीशन’ जिसकी स्थापना नौकरियों में जातीय उच्चता को बनाये रखने के लिए की गई थी, स्वराजवादियों ने स्वीकृत नहीं होने दिया।
- - 1925 में विट्ठलभाई पटेल का सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव (केन्द्रीय विधानमण्डल) असेम्बली का अध्यक्ष चुना।
- - 1923-24 में नगर पालिकाओं और स्थानीय निकायों में हुए चुनावों में कांग्रेस को विशेष सफलता मिली।
- कलकत्ता के मेयर सी. आर. दास
- अहमदाबाद के मेयर विट्ठलभाई पटेल
- पटना के मेयर राजेन्द्र प्रसाद
- इलाहाबाद के मेयर पं. जवाहर लाल नेहरू आदि।
पार्टी संकट -
- - 16 जून 1925 को सी.आर. दास की मृत्यु के बाद स्वराज दी की शक्ति क्षीण होने लगी, पार्टी में साम्प्रदायिक भावनाओं तथा सरकार के साथ सहयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
- - सरकार के साथ सहयोग का इच्छुक - प्रत्युत्तरवादी
- - सरकार के साथ सहयोग के विरोधी - अप्रत्युत्तरवादी
- - प्रत्युत्तरवादी गुट हिन्दू हितों की रक्षा के लिए सरकार के साथ सहयोग करने का इच्छुक था जिसमें एम. सी. केलकर, एम. आर. जयकर, मदन मोहन मालवीय थे।
- - कालांतर में मालवीय और लाला लाजपत राय ने स्वतंत्र कांग्रेस पार्टी की स्थापना की।
- - 1925 में पं. मोतीलाल नेहरू ने थलसेना के भारतीयकरण के लिए बनाई गई स्क्रीन समिति की सदस्यता स्वीकार की।
- - मध्यप्रांत के समाजवादी नेता एस. वी. ताम्बले मध्यप्रांत के गवर्नर की परिषद के सदस्य बने।
- -1926 में हुए चुनावों में स्वराज दल को विशेष सफलता नहीं मिली क्योंकि उसे विद्रोही कार्यकर्ताओं तथा हिन्दू और मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों का सामना करना पड़ा।
- केन्द्रीय - 40 सीट
- प्रांतीय विधान परिषद- मद्रास में आधी सीट
- उत्तर प्रदेश, मध्यप्रांत तथा पंजाब में हार का सामना ।
- - बहुमत के अभाव में भी 1928 को केन्द्रीय विधान मण्डल में पेश किया गया। पब्लिक सेफ्टी िबल का सभी राष्ट्रवादी शक्तियों ने एक स्वर में विरोध किया।
- - मोतीलाल नेहरू ने इसको भारतीय राष्ट्रवाद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर सीधा हमला तथा ‘भारतीय गुलामी विधेयक नं. 1’ की संज्ञा दी।
- - 5 फरवरी, 1924 को गांधीजी को खराब स्वास्थ्य के कारण सरकार ने जेल से रिहा किया।
- - जून, 1924 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में गांधीजी ने एक प्रस्ताव पेशकर कांग्रेस की सदस्यता हेतु न्यूनतम अर्हता ‘कताई’ को निर्धारित किया।
- - दिसम्बर 1924 में बेलगांव में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की।
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