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Showing posts from November, 2019

तुगलक वंश का संस्थापक कौन था

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गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) अलाउद्दीन के सेनापतियों में गयासुद्दीन तुगलक या गाजी मलिक तुगलक वंश का प्रथम शासक था।  गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जिसने 'गाजी' की उपाधि धारण की। गयासुद्दीन तुगलक ने खूतों और मुकद्दमों के पुराने अधिकारों को बहाल किया था। गयासुद्दीन तुगलक ने दीवान-ए-विजारत को आदेश दिया कि इक्ता की मालगुजारी में एक वर्ष में 1/10 या 1/11 से अधिक वृद्धि न की जाए। सिंचाई हेतु नहर निर्माण कराने वाला गयासुद्दीन पहला शासक था। इसने अमीरों को पद देने में वंशानुगतता के साथ-साथ योग्यता को भी आधार बनाया गया। निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के बारे में कहा था कि 'हनुज दिल्ली दूरस्त' (हुजूर दिल्ली अभी दूर है)। गयासुद्दीन के औलिया से संबंध कटुतापूर्ण थे। मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.)  मार्च, 1325 में उलूग खां (जूना खां) मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से सुल्तान बना। मध्य युग के शासकों में चरित्र और कार्यों की दृष्टि से अन्य कोई शासक इतना विवादास्पद नहीं रहा, जितना मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुग...

वायु की आर्द्रता मापी जाती है

विज्ञान के महत्त्वपूर्ण प्रश्न प्रकाश वर्ष दूरी मापने की इकाई है। सूर्य के चारो औार चक्कर लगाते हुए ग्रह का वेग बदलता रहता है। जब ग्रह सूर्य के समीप होता है तो उसका वेग अधिक होता है, तो वेग न्यूनतम होता है। किसी वस्तु का द्रव्यमान सदैव स्थिर रहता है जबकि इसका भार भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न होता है। पृथ्वी तल पर वस्तु का भार भूमध्य रेखा पर सबसे कम और ध्रुवों पर सबसे अधिक होता है। हाइग्रोमीटर से वायु की आर्द्रता मापी जाती है। प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है। ध्वनि तरंगे निर्वात में गमन नहीं कर सकती। किसी वस्तु को जब द्रव में डुबोया जाता है तो उसके भार में कमी उसके द्वारा विस्थापित किए द्रव के भार के बराबर होती है। जब कोई सेना की टुकड़ी पुल को पार करती है तो सैनिकों को कदम से कदम न मिलाकर चलने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे अनुनाद के कारण पुल टूटने का खतरा रहता है। किसी वस्तु के द्रव्यमान व वेग का गुणनफल को संवेग कहते हैं। घोड़ा-गाड़ी को न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार आगे वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र वह बिन्दु है, जह...

धर्म के ठेकेदार भड़काना जानते हैं, पर दौलत लुटाने की बात हो तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं, क्यों

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सबको डर है महजब मेरा न लुप्त हो जाए, मुझको डर है कहीं धरा से प्रकृति लुप्त न हो जाए।। — राकेश सिंह कुछ धर्मज्ञ बड़ी निडरता के साथ बहुत कुछ गलत बोल जाते हैं। उन्हें पता है उनके पीछे गुलाम मानसिकता की बड़ी फौज खड़ी है। फिर दबंगाई से क्यों न बोलेंगे? डर तो उन्हें होता है जो गरीबों के उत्थान में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं बिना किसी मजहब में भेदभाव किए। उन्हें पता है इन बेसहारा गरीबों के पास कोई भी धर्म के बड़े सहायता करने नहीं आते हैं। बस ऊंचे पदों पर बैठकर जहर उगलते हैं एक—दूजे के लिए, और उनसे भड़क उठती हैं गुलाम मानसिकता। हां, मैंने देखा है उन्हें बेवाक बोलते हुए। परंतु वे जितनी बेवाकी से अपने समुदाय के लोगों को उग्र और मर मिटने के लिए उत्साहित करते हैं, शायद उतनी ही उदारता से उन गुलाम मानसिकता के लोगों की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कभी आगे नहीं आए। और न ही अपने समुदाय के गरीब लोगों में अपनी अकूत धन सम्प​​​त्ति को यह कहते हुए बांटते हैं कि हमारे धर्म में कोई गरीब न रहे, कोई भूखा न सोए। कोई क्यों लुटाएगा अपना धन, उसने मेहनत से कमाया है, धर्म थोड़े ही देता है पैसा।...