अभी भी वक्त है धर्म वालों नहीं तो धरती को नहीं बचा पाएंगे, पढ़ें ये कहानी



दो धर्मों के युवकों में अपने-अपने भगवान को लेकर झगड़ा हो गया। एक कहता है मेरे भगवान ने सृष्टि की रचना की है। वहीं दूसरा भी ऐसा ही तर्क दे रहा था। वहीं से एक विद्वान व्यक्ति गुजर रहा था, उसने उन दोनों से कहा भाई! क्यों लड़ रहे हो?
फिर दोनों ने अपना विवाद उस पुरुष को सुनाया।
उन दोनों के तर्क सुनकर विद्वान ने कहा तुमने क्या अपने-अपने ईश्वर को देखा है?
दोनों युवकों ने एक ही जबाव दिया- नहीं
तो फिर क्या तुमने उसे महसूस किया है?
इस पर युवकों ने कहा- हां।
फिर विद्वान बोला- सुनों बच्चों यदि इस सृष्टि के धर्म के अनुसार रचनाकार नहीं है। अगर ऐसा होता तो क्या वे तुम्हारी तरह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए लड़ नहीं सकते थे?
अंत में वह विद्वान बोला- भ्रम है मानव को कि ईश्वर अलग है, देखों बच्चों, एक माता-पिता की संतानें भी लड़ती है क्यों?
दोनों ने कहा - बंटवारे को लेकर,
ऐसे ही कुछ लोग होते हैं जो ईश्वर के नाम पर लोगों को भ्रमित करके लड़ाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
हमारे लिए यह पृथ्वी सबसे बड़ा ईश्वर है, जिसने सभी धर्मों को अपनी गोद में फलने-फूलने का मौका देती है।
तो आज से तुम लड़ना छोड़ो और इस धरती को बचाओ।
नहीं तो धर्मों का तो पतन होगा ही साथ मानव जाति का भी पतन हो जाएगा।

बेतुक बातें

हां, दोस्तों ये बेतुक बातें हैं क्योंकि लोगों के सदियों के बाद भी यह समझ आया कि धर्म केवल दैनिक जीवन को अच्छे से जीने का साधन मात्र है, जिसे अनेक विद्वानों ने सिद्ध किया है और आज जब विज्ञान ने कई मिथ्यकों को तोड़ दिया है उसके बाद भी लोग धर्म को कट्टरता से अपना रहे हैं।
अगर सदियों पीछे जाएं तो हमें ​दुनियाभर की सभ्यताओं के बारे में मालूम होता है कि उनमें प्रकृति के प्रतिमानों को पूजा गया था। जो एक समान थे। सूर्य वह शक्ति है जिसके ताप से प्रकृति फलती है और हम जीवन पाते हैं।
यह सौ प्रतिशत सत्य है कि यदि बात पैसों की आ जाए तो धर्म की बातें बौनी लगने लगती है, क्योंकि इसी पैसे के खातिर भाई—भाई को मार देता है।
अगर यह बात अच्छी लगे तो अपने जीवन में जरूर उतारना और दुनिया को 'जियो और जीने दो' का संदेश देना।

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