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फणीश्वर नाथ रेणु: एक सफल आंचलिक उपन्यासकार
- आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ मुंशी प्रेमचंद के बाद के युग के सबसे सफल और प्रभावशाली लेखकों में से एक थे।
- उन्होंने आंचलिक क्षेत्र को अपने उपन्यास ‘मैला आंचल’ में चित्रित किया, जिसमें समकालीन ग्रामीण भारत की जीवन शैली को उजागर किया गया है। यह उपन्यास प्रेमचंद के गोदान के बाद, सबसे सफल हिंदी उपन्यास माना जाता है।
- फणीश्वर नाथ 'रेणु' का जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के अररिया जिले के सिमराहा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटे से गांव औराई हिंगना में हुआ था।
देश की आजादी के लिए लड़े
- रेणु मंडल समुदाय से संबंधित थे, जो एक विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय था। उनके पिता शिलानाथ मंडल थे, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे।
- फणीश्वर की शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। रेणु की प्राथमिक शिक्षा अररिया और फोर्ब्सगंज में हुई थी।
- उन्होंने बिराटनगर आदर्श विद्यालय (स्कूल), बिराटनगर, नेपाल से मैट्रिक किया।
- इंटरमीडिएट करने के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गए। भारत की आजादी के बाद में उन्होंने वर्ष 1950 में नेपाली क्रांतिकारी आंदोलन में भी भाग लिया।
साहित्यिक सफर
- फणीश्वर नाथ रेणु ने लेखन कार्य वर्ष 1936 में शुरु कर दिया। इस दौरान उनकी कुछ कहानियां प्रकाशित हुई, लेकिन वे अपरिपक्व कहानियां थी। जब वह वर्ष 1944 में जेल से बाहर आए तो उन्होंने अपनी पहली परिपक्व कहानी ‘बटबाबा’ लिखी। यह कहानी ‘साप्ताहिक विश्वमित्र’ के 27 अगस्त, 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। बाद में ‘पहलवान की ढोलक’ वर्ष 1944 में ही प्रकाशित हुई। उनके जीवन की अंतिम कहानी 1972 में ‘भित्तिचित्र की मयूरी’ थी।
- ‘रेणु’ को जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उनको उनकी कहानियों से भी मिली। ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘सम्पूर्ण कहानियां’, आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
- फणीश्वरनाथ रेणु के प्रसिद्ध उपन्यास ‘मैला आंचल’ के लिए उन्हें 1970 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। रेणु ने आपातकाल के दौरान सरकारी दमन और शोषण के विरुद्ध ग्रामीण जनता के साथ प्रदर्शन करते हुए जेल गए। उन्होंने आपातकाल का विरोध करते हुए अपना ‘पद्मश्री’ का सम्मान भी लौटा दिया। इसी समय रेणु ने पटना में ‘लोकतंत्र रक्षी साहित्य मंच’ की स्थापना की।
उपन्यास
- मैला आंचल
- परती परिकथा
- दीर्घतपा
- कितने चौराहे
- कलंक मुक्ति
- जुलूस
- पलटू बाबू रोड
कथा संग्रह
- मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
- लाल पान की बेगम
- एक आदिम रात्रि की महक
- पंचलाइट
- तबे एकला चलो है
- ठेस
- संवदिया
रिपोतार्ज
- ऋणजल-धनजल
- नेपाली क्रांतिकथा
- वनतुलसी की गंध
- श्रुत अश्रुत पूर्वे
कहानी संग्रह
- ठुमरी
- आदिम रात्रि की महक
- एक श्रावणी दोपहरी की धूप
- अच्छे आदमी
भाषा शैली
- फणीश्वर नाथ की भाषा शैली आम बोलचाल की खड़ी बोली है। इनकी भाषा में तद्भव शब्दों के साथ ही बिहार के पूर्णिया, अररिया जिलों के ग्रामीण अंचल की बोली के आंचलिक शब्दों का बाहुल्य मिलता है।
- उनकी भाषा प्रसाद गुण से युक्त, सरल सहज एवं मार्मिक प्रतीत होती है। उनका वाक्य विन्यास, सरल, संक्षिप्त और रोचक है। भाषा की बनावट में आंचलिकता के प्रदर्शन के लिए उन्होंने अपने भाषा में आंचलिक लोकोक्तियां एवं मुहावरे का खुलकर प्रयोग किया है।
- यही नहीं उन्होंने भाषा के संप्रेषणता को ध्यान में रखकर वर्णनात्मक, आत्मकथा प्रतीकात्मक, भावनात्मक, चित्रात्मक आदि का प्रयोग किया है।
उनकी कहानी पर बॉलीवुड में बनी फिल्म
- फणीश्वर की लिख कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर ‘तीसरी कसम’ नामक फिल्म बनी। इसके बाद वह काफी लोकप्रिय हो गये थे।
- आज भी ‘तीसरी कसम’ फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। इस फिल्म केा बासु भट्टाचार्य ने डायरेक्ट किया था और इसके निर्माता सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र थे।
- इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने मुख्य भूमिका में अभिनय किया था।
निजी जीवन
- फणीश्वर नाथ ने तीन शादियां की थी। उनकी पहली पत्नी सुलेखा रेणु थी, जिनसे एक बेटी कविता हुई। उन्हें लकवा हो जाने की वजह से फणीश्वर ने दबाव में दूसरा विवाह एक विधवा पद्मा से किया। इनसे उनके तीन बेटे हुए।
- उनकी तीसरी शादी जब उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया तो वहां एक नर्स लतिका ने उनकी सार-संभाल की। इस दौरान रेणु उन पर आसक्त हो गए। बाद में उनसे शादी कर ली।
देहांत
- फणीश्वर नाथ रेणु का निधन ‘पैप्टिक अल्सर’ नामक बीमारी के इलाज के दौरान 11 अप्रैल, 1977 को हो गया।
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