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रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां
रीतिकाल (1700 विक्रम से 1900 विक्रम संवत)
- उत्तर मध्यकाल को 'रीतिकाल' कहा जाता है।
- रीति का अर्थ है काव्य को पाठक/श्रोता द्वारा लिखना पढ़ना अथवा सुनने की विधि।
- काव्य का अर्थ विश्वनाथ ने बताया — 'वाक्यम रसात्मक काव्यम्'
- रीतिकाल का आरंभ सूरदास की 'साहित्य लहरी', कृपाराम की 'हित तरंगिणी' और नंद दास की 'रसमंजरी' को माना जाता है।
रीतिकाल के अन्य नामकरण
- अलंकृत — मिश्र बंधु
- श्रृंगार काल — पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
- रीति श्रृंगार काल — डॉ. भागीरथ मिश्र
- कला काल — डॉ. रमाशंकर शुक्ल 'रसाल'
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां
- श्रृंगारिकता मुख्य काव्य प्रवृत्ति
- रीति की प्रधानता
- प्रकृति के आलंबन की अपेक्षा उद्दीपन रूप को प्रमुखता
- कला पक्ष मुख्य रूप से उजागर
- प्रबंध एवं मुक्तक काव्य इसकी विशेषता
- आलंकारिकता की प्रधानता
- ब्रजभाषा का रीतिकालीन साहित्य में प्रयोग
- लाक्षणिक ग्रंथों का निर्माण
रीतिकाल के मुख्य संप्रदाय एवं प्रवर्तक
- संप्रदाय प्रवर्तक
- रस आचार्य भरत मुनि
- अलंकार : भामह और दंडी
- रीति : आचार्य वामन
- वक्रोक्ति : आचार्य कुंतक
- ध्वनि : आनंद वर्धन
- औचित्य : आचार्य महेंद्र
रीतिकालीन कवि और उनकी प्रसिद्ध रचनाएं
- केशवदास : रसिकप्रिया, कविप्रिया, रतनबावनी, वीरसिंह देव चरित, छंदमाला, नखशिख आदि।
- मतिराम : फूलमंजरी, रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत कौमुदी।
- बिहारी : बिहारी की रचना 'बिहारी सतसई' जिसमें 713 दोहे हैं।
- भिखारी दास : रस सारांश, श्रृंगार निर्णय आदि
- भूषण : छत्रसाल दशक, शिवराज भूषण, शिवा बावनी आदि
- चिंतामणि त्रिपाठी : कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक आदि।
- कुलपति मिश्र : रस रहस्य
- कवि देव : भाव विलास, अष्टयाम, भवानी विलास, प्रेम तरंग, कुशल—विलास, जाति—विलास, देवचरित्र, रसविलास, प्रेम चंद्रिका, सुजान—विनोद, सुखसागर तरंग, देव शतक, राग रत्नाकर आदि
- रसिक गोविंद : रामायण सूचनिका, कलिजुग रासो, समय पदावली, अष्टदेश भाषा
- अमीर दास : श्री कृष्ण साहित्य संधू, सभा मंडन, ब्रज विलास, सतसई, अश्व संहिता प्रकाश
- कवि ग्वाल : रसिकानंद, कवि दर्पण, साहित्यांद, वंशीबीसा, हम्मीर हठ, गुरु पचासा, सुधा निधि, विजय विनोद आदि
- रसलीन : अंग दर्पण, रस प्रबोध
- पद्माकर : हिम्मत बहादुर विरुदावली, पद्मा भरण, जगत्विनोद, प्रबोध पचासा, प्रताप सिंह विरुदावली, कल पच्चीसी
- दूल्हे : कवि कुल कंठाभण
- सेवादास : गीता महात्म्य, अलबेले लालू जी को नखशिख, अलबेले लालजू को छप्पय
- सेनापति : कवित्त रत्नाकर
- रस निधि : रतन हजारा, विष्णुपद कीर्तन, कवित्त, रस निधि सागर, हिंडोला
- कृष्ण कवि : 'बिहारी सतसई' की टीका, विदुर—प्रजागर
- राम सहाय : राम सतसई, वाणी भूषण, व्रत तरंगिणी, ककहरा
- आलम : आलम केली
- ठाकुर : ठाकुर ठसक, ठाकुर शतक
- बोधा : विरह वारीश, इश्कनामा
- घनानंद : सुजान सागर, कृपाकंद, इश्कलता, प्रेम सरोवर, वियोग बेलि, प्रेम पद्धति
- जगजीवनदास : ज्ञानप्रकाश, अघविनाश, महाप्रलय, प्रेम पंथ, शब्द सागर, आगम पद्धति
मुख्य बिंदु
- भक्ति काल के अवसान का परिणाम ही रीतिकाल है।
- लोकमंगल की भावना का अभाव रीतिकाल का विशेष दोष रहा है।
- रीति शब्द का सही अर्थ में 'काव्यांग निरूपण' अर्थात काव्य लक्षणा आधारित ग्रंथों की रचना करना है।
- देव की अष्टयाम रचना भोग विलास की दिनचर्या पर केंद्रित है।
- कवि पद्माकर को कविराज शिरोमणि से विभूषित किया गया है।
- शुक्ल के अनुसार घनानंद लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य के कवि हैं।
- रीतिकाल के अवसान में संकुचित (सीमित) दृष्टिकोण को माना जा सकता है।
- कवि पद्माकर को रीतिकालीन काव्य अंतिम कवि माना जाता है।
- हित तरंगिणी सतसई परंपरा का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
- मुक्तक काव्य रूप रीति काव्य में प्रमुखता से उभरा है।
- नायिका भेद और श्रृंगार रस विवेचन रीतिकाल का प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है।
- नायिका भेद की दृष्टि से सुख सागर तरंग प्रथम ग्रंथ है।
- नायिका भेद की दृष्टि से आचार्य देव अप्रतिम है।
- आलंकारिक प्रवृत्ति रीतिकालीन काव्य की मुख्य प्रवृत्ति है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल केशव को 'कठिन काव्य का प्रेत' कहा है।
- छंदों का अजायबघर केशव प्रणीत 'रामचंद्रिका' को माना जाता है।
- भावविलास कवि देव की प्रथम रचना है।
- आलोचकों ने बिहारी को आचार्य देव के समान बताया है।
- बिहारी सतसई पर रामचरितमानस के बाद सर्वाधिक टीका लिखी गई है।
- प्रसिद्ध आलोचक मिश्र बंधुओं ने बिहारी को कवि की श्रेणी में नहीं माना।
- कृष्ण कवि बिहारी सतसई के प्रथम टीकाकार
- देव बड़े की बिहारी इस विवाद को जन्म देने वाले प्रसिद्ध आलोचक मिश्र बंधु ही है।
- सेनापति ने रीतिकाल की प्रकृति का मुख्य रूप से चित्रण किया है।
- डॉ. ग्रियर्सन 'बिहारी सतसई' को श्रेष्ठ रचना स्वीकार किया है।
- प्रेमिका सुजान घनानंद के काव्य का प्रमुख आधार रही है।
- कवि पद्माकर के जगत विनोद ग्रंथ को श्रृंगार रस का सार ग्रंथ माना जाता है।
- केशव दास ने अलंकार को काव्य का प्राण तत्व माना।
- काल्पनिक समाहार शक्ति के कारण बिहारी सतसई प्रसिद्ध है।
- रीतिकाल में उर्दू शैली कविता का शुभारंभ
- रामप्रसाद निरंजनी द्वारा रचित ग्रंथ 'भाषायोगवशिष्ठ' है।
- नित्यानंद हरियाणा के प्रसिद्ध संत थे।
- रसिकप्रिया का प्रमुख रस श्रृंगार रस विवेचन है।
- कवि पद्माकर की अंतिम रचना गंगा लहरी है।
- कवि घनानंद की प्रेयसी का नाम सुजान था।
- रीतिकालीन राष्ट्र कवि भूषण को कहा जाता है। जिनका का वीर रस व ओजत्व गुण से युक्त है।
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