हार्मोन क्या है
- मानव को विभिन्न जैविक क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए वातावरण के साथ समस्थापन बनाना पड़ता है। इस कार्य के लिए शरीर का तंत्रिका तंत्र तथा अंत:स्रावी तंत्र सम्मिलित रूप से कार्य करते हैं। इन दोनों तंत्रों के सम्मिलित अध्ययन को ही न्यूरो एण्डोक्राइनोलॉजी कहते हैं।
- हार्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1906 ई. में स्टर्लिंग ने किया था।
- हार्मोन एक विशिष्ट यौगिक होता है जो अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा संश्लेषित होता है।
- इनके अणु छोटे होते हैं, इनका अणुभार कम होता है।
- ये ब्लड द्वारा पूरे शरीर में संचरित होते हैं।
- अधिकांश हार्मोन जल में घुलनशील है।
- यह मुख्यतः अमीनो अम्ल, कैटेकोलेमीन्स स्टीरायड्स एवं प्रोटीन होते हैं।
- स्टीरायड्स हार्मोन्स का आधार पदार्थ कॉलेस्ट्राल होता है।
- अन्तःस्रावी विज्ञान के जनक Father of Endocrinology - थॉमस एडीसन
- बहिःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित स्राव को शरीर के किसी निश्चित भाग में एक नलिका या वाहिनी द्वारा पहुंचाया जाता है।
- वे ग्रन्थियां जो अपने स्राव को रक्त द्वारा लक्ष्य तक पहुंचाती है इन्हें नलिकाविहीन ग्रंथियां भी कहा जाता है।
- इनके द्वारा जिन रासायनिक यौगिकों का स्राव किया जाता है उन्हें हार्मोन कहते हैं।
- अंत:स्रावी ग्रंथियां और शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हार्मोन स्रावित करने वाले ऊतक/कोशिकाएं मिलकर अंतस्रावी तंत्र का निर्माण करते हैं।
- पीयूष ग्रंथि, पिनियल ग्रंथि, थाइरॉयड, अग्नाशय, पैराथाइरॉयड, थाइमस और जनन ग्रंथियां (नर में वृषण और मादा में अंडाशय) शरीर के सुनियोजित अंत:स्रावी अंग हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अंग जैसे— जठर—आंत्रीय मार्ग, यकृत, वृक्क, हृदय आदि भी हार्मोन का उत्पादन करते हैं।
- इन ग्रंथियों में बहि:स्राव तथा अंत:स्राव दोनों प्रकार की ग्रंथियां होती है तथा ये वाहिका युक्त होती है।जैसे— अग्न्याशय ग्रंथि
हाइपोथैलेमस
- हाइपोथैलेमस, अग्र मस्तिष्क का भाग है जो डाइऐनसेफेलॉन की गुहा, डायोसील या तृतीय निलय के फर्श का निर्माण करता है। इसमें धूसर द्रव्य के अनेक क्षेत्र होते हैं। जिनको हाइपोथैलेमिक केन्द्रक कहते हैं।
- यह शरीर के विविध प्रकार के कार्यों का नियंत्रण करता है।
- इसमें हार्मोन का उत्पादन करने वाली कई तंत्रिकास्रावी कोशिकाएं होती हैं जिन्हें न्यूक्ली कहते हैं।
- ये हार्मोन पीयूष ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन के संश्लेषण और स्राव का नियंत्रण करते हैं।
- ये हार्मोन इस ग्रंथि से निकलकर पीयूष ग्रंथि के अग्रपालि को विभिन्न हार्मोन स्रावित करने के लिए उद्दीपित करते हैं।
पीयूष या पिट्यूटरी ग्रंथि
- यह कपाल की स्फेनॉयड हड्डी में, सेलाटर्सिका नामक गड्ढ़े में उपस्थित रहती है। यह लघु एवं मस्तिष्क के अधरतल के मध्य स्थित रहती है एवं उससे एक इन्फन्डीबुलम नामक छोटे वृन्त से जुड़ी रहती है। भार लगभग .6 ग्राम लेकिन स्त्रियों मं गर्भावस्था के दौरान कुछ बड़ी हो जाती है।
- पियूष ग्रंथि को 'विसेल्सियस' ने इसके विभिन्न कार्यों के कारण 'मास्टर ग्लैंड' कहा।
मध्यपिण्ड द्वारा स्रावित हार्मोन
पश्च पिण्ड द्वारा स्रावित हार्मोन
- इसे एन्टी डाईयूरेटिक हार्मोन — एडीएच या मूत्ररोधी हार्मोन भी कहते हैं। यह मुख्यत: पॉलीपेप्टाइड होता है।
- यह वृक्क की मूत्रवाहिनियों को जल का पुनरावशोषण करने को प्रेरित करता है। साथ ही यह रुधिर वाहिनियों को सिकोड़ कर रक्तदाब बढ़ाता है।
- यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है, इसलिए इसको एंटीडाइयूरेटिक कहा जाता है।
कमी से होने वाले रोग
- शरीर में इसकी कमी से मूत्र पतला हो जाता है तथा इसकी मात्रा बढ़ जाती है, जिसे मूत्रलता कहते हैं।
- वृक्क की नलिकाओं से जल का पुनरावशोषण कम होने से उत्पन्न रोग को डायबिटीज इन्सिपिडस या उदकमेह कहते हैं।
अधिक स्रावण से उत्पन्न रोग
- अत्यधिक स्रावण से मूत्र गाढ़ा हो जाता है क्योंकि जल का अत्यधिक मात्रा में पुनरावशोषण होने लगता है। इसके साथ ही रक्त भी पतला हो जाता है।
- यह पॉलीपेप्टाइड होता है तथा गर्भाशय की अरेखितपेशियों में सिकुड़न पैदा करता है जिससे प्रसवपीड़ा उत्पन्न होती है तथा बच्चे के जन्म में सहायता पहुंचाता है।
- यह स्तन से दूधस्राव में भी सहायक है।
- संभोगावस्था में यह हार्मोन गर्भाशय की दीवार में संकुचन उत्पन्न करता है जिससे शुक्राणु अण्डवाहिनियों में आसानी से पहुंच जाते हैं।
- पीयूष ग्रंथि को 'मास्टर ग्रंथि कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य अंत:स्रावाी ग्रंथियों के स्रावण को नियंत्रित करता है। व्यक्ति का स्वभाव, स्वास्थ्य, वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है।
थायरॉइड ग्रंथि
- यह अंत:स्रावी ग्रंथि है। यह मनुष्य में गर्दन के भाग में श्वासनली के दोनों ओर तथा स्वरयंत्र के जोड़ के अधर तल पर स्थित होती है। यह संयोजी ऊतक की पतली अनुप्रस्थ से जुड़ी रहती है जिसे इस्थमस कहते हैं। इसका आकार एच आकार का होता है।
- यह अनेकों खोखली व गोल पुटिकाओं से मिलकर बनता है। इन पुटिकाओं की गुहा में आयोडीन युक्त गुलाबी रंग का कोलायडी पदार्थ स्रावित होता है। जिसे थाइरोग्लोब्यूलिन कहते हैं।
थाइरॉक्सिन
- इसे टेट्राआयोडोथाइसेनीन या कहते हैं। यह अमीनो अम्ल है जिसमें 65 प्रतिशत आयोडीन होता है।
- मानव की सभी उपापचयी क्रियाओं /मेटाबोलिक को नियंत्रित करता है। अत: इसे अंत:स्रावी तंत्र का पेस मेकर कहते हैं।
- यह हृदय की धड़कनें की दर को प्रभावित करता है, शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
- उभयचरों के टैडपोल में कायान्तरण को प्रेरित करता है। थाइरॉक्सिन की कमी से लार्वा वयस्क में रूपान्तरित नहीं होते। इस प्रक्रिया को नियोटेनी या पीडोजेनेसिस कहते हैं।
- यह हार्मोन असमतापी कशेरूकियों में निर्मोचन तथा परासरण का नियंत्रण करता है।
- बच्चों में थाइरॉक्सिन की कमी से,
- बच्चे बौने कुरूप, पेट बाहर निकला हुआ, जीभ मोटी व बाहर निकली हुई, जननांग अल्पविकसित तथा त्वचा सूखी हुई। ये मानसिक रूप से अल्पविकसित होते हैं।
- वयस्क व्यक्ति में।
- बाल झड़ने लगते हैं, त्वचा में वसा एवं श्लेष्म जमा हो जाता है। शरीर मोटा और बीएमआर कम हो जाता है। इसमें मनुष्य जनन एवं मानसिक रूप से पूर्ण विकसित नहीं होता है।
- थाइरॉक्सिन की अत्यधिक कमी से। थाइरॉइड ग्रंथि के आकार में वृद्धि हो जाती है, गर्दन में सूजन आ जाती है।
- थाइरॉक्सिन हार्मोन में मुख्यत: आयोडीन होता है। अत: आयोडीन की कमी से यह रोग हो जाता है।
हाइपरथाइरॉडिज्म — अधिक स्रावण से होने वाले रोग
- थाइरॉक्सिन हार्मोन के अत्यधिक स्रावण से यह रोग होता हैं इसमें हृदय स्पंदन बढ़ जाता है। इससे घबराहट, थकावट और चिड़चिड़ापन आ जाता है।
- इसमें आंख फूलकर नेत्र कोटर से बाहर निकल आती है।
- थाइरॉइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है।
- इसमें थाइरॉइड ग्रंथि में जगह—जगह गांठें बन जाती है।
पैराथाइरॉइड ग्रंथियां
- थाइरॉइड ग्रंथि में पृष्ठ सतह पर धंसी चार छोटी व लाल अंडाकार ग्रंथियों के समूह में होती है।
- यह हार्मोन ब्लड में कैल्शियम की मात्रा को बनाए रखता है।
- यह आंत में कैल्शियम के अवशोषण को और किडनी में इसके पुनरावशोषण और फॉस्फेट के उत्सर्जन को बढ़ाता है।
- यह अस्थियों के अनावश्यक भागों को गलाकर रक्त में कैल्शियम व फॉस्फोरस मुक्त करता है।
- यह हड्डियों की वृद्धि व दांतों के निर्माणका नियंत्रण करता है।
- पैराथॉरमोन के एंटी काम करता है। यह हड्डियों के विघटन को काम करता है तथा मूत्र में कैल्शियम का उत्सर्जन बढ़ाता है।
अल्पस्रावण से होने वाले रोग
- पैराथॉरमोन के अल्पस्रावण से रक्त में कैल्शियम की मात्रा कम और फॉस्फेट की मात्रा अधिक हो जाती है।
- जब यह ग्रंथि सही कार्य नहीं कर पाती, तो रक्त में कैल्शियम व फॉस्फोरस की मात्रा तेजी से घटने लगती है। इससे पेशियों में ऐंठन होने लगती है और शरीर ऐंठ जाता है। जिसे टिटनेस रोग हो जाता है।
- बचपन में अगर इस हार्मोन की कमी हो जाए तो बच्चों में मस्तिष्क, हड्डियां व दांत पूर्ण विकसित नहीं हो पाते हैं।
हाइपर पैराथइरॉइडिज्म
- जब कभी पैराथाइरॉइड ग्रंथि ट्यूमर के कारण अत्यधिक बढ़ जाती है तो हार्मोन का अधिक स्राव होने लगता है। इससे कई रोग हो जाते हैं—
- इस रोग में हड्डियों से कैल्शियम बाहर सोख लिया जाता है जिससे रक्त में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप हड्डियां मुलायम एवं भंगूर हो जाती है और किसी—किसी स्थान पर कैल्शिफिकेशन होता है।
- कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। पेशियां व तंत्रिकाएं क्षीण हो जाती है।
- मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। भूख कम लगती है।
- कैल्शियम शरीर में अधिक हो जाने के परिणामस्वरूप यह गुर्दे एवं पित्ताशय में जम कर पथरी बनाने लगती है।
ऐड्रीनल ग्रंथि
- प्रत्येक किडनी के ऊपरी सिरे पर अंदर की ओर स्थित, टोपी के समान गाढ़े भूरे रंग की होती है।
- एड्रीनल ग्रंथि के दो भाग होते हैं—
- कोर्टेक्स और मेडुला
मानव शरीर में निम्नलिखित हार्मोनों में से कौन सा रक्त कैल्शियम और फॉस्फेट को विनियमित करता है?
(a) ग्लूकैगॉन (Glucagon)
(b) वृद्धिकर हार्मोन (Growth hormone)
(c) परावटु हार्मोन (Parathyroid hormone)
(d) थायरॉक्सिन (Thyroxine)
उत्तर-(c)
(L.A.S. (Pre) G.S. 2007)
व्याख्या : परावटु (पैराथाइरॉइड) हार्मोन पैराथाइरॉइड ग्रंथि से स्रावित होता है। यह हार्मोन रुधिर में कैल्शियम तथा फॉस्फेट आयनों की मात्रा का नियमन कर शरीर के अन्तः वातावरण को सुचारु बनाता है। अर्थात् होमियोस्टेसिस करता है। थाइरॉक्सिन हार्मोन थाइरॉइड ग्रन्थि से स्रावित हार्मोन है। यह शरीर में आधारी उपापचय दर का नियंत्रण करता है। यह शरीर में वृद्धि तथा भिन्नता के लिए आवश्यक है। हृदय स्पन्दन दर को प्रभावित करके शरीर के तापक्रम को प्रभावित करता है। वृद्धि हार्मोन पिट्यूटरी या पीयूष ग्रन्थि से स्रावित होता है। यह शरीर में प्रोटीन संश्लेषण को प्रभावित करता है तथा शरीर के ऊतकों के क्षय को रोकता है। ग्लूकैगॉन हार्मोन अग्नाशय की अल्फा-कोशिकाओं (a-cells) द्वारा स्रावित होता है। इसका सावण उस समय अधिक होता है, जब रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य से कम होने लगती हैं।
इन्सुलिन स्रावित होता है-
(a) स्प्लीन द्वारा
(b) गोनड द्वारा
(c) यकृत द्वारा
(d) पैंक्रियाज द्वारा
(e) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(d)
सूची-I (पदार्थ) को सूची-II (शरीर क्रियात्मक भूमिका) के साथ सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-
सूची- I सूची- II
(पदार्थ) (शरीर क्रियात्मक भूमिका)
A. टायलिन 1. रक्त में एंजिओटेसिनोजेन को एंजिओंटेसिन में बदलता है
B. पेप्सिन 2. स्टार्च को पचाता है
C रेनिन 3. प्रोटीन को पचाता है
D. ऑक्सीटोसिन 4. वसाओं को जल अपघटित करता है
5. मसृण पेशियों (Smooth Muscles) में सिकुड़न प्रेरित करता है
कूट:
A B C D
a. 2 3 1 5
b. 3 4 2 5
c. 2 3 5 1
d. 3 1 2 4
उत्तर- a
मधुसूदनी (Insulin) अन्तःस्त्राव (Hormone) एक -
(a) ग्लाइकोलिपिड (Glycolipid) है
(b) वसीय अम्ल (Fatty acid) है
(c) पेप्टाइड (Peptide) है
(d) स्टेरॉल (Sterol) है
उत्तर-(c)
व्याख्या : लैंगरहेंस की द्वीपिका अग्नाशय का एक भाग है। इसकी खोज लैंगरहैंस नामक चिकित्साशास्त्री ने की थी।
इसकी अल्फा कोशिका से - ग्लूकॉन, बीटा कोशिका से - इंसुलिन, गामा कोशिका से - सोमेटोटिन हार्मोन स्रावित होते हैं।
इन्सुलिन की खोज वैटिंग एवं वेस्ट ने सन् 1923 ई. में की थी।
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