जयशंकर प्रसाद
जन्म: 30 जनवरी, 1890 ई. को वाराणसी में
मृत्यु: 17 नवम्बर, 1939 ई. में
- जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक संभ्रान्त परिवार में हुआ।
- ‘सुंघनी साहु’ परिवार के 'बाबू देवी प्रसाद' इनके पिता थे। माता का नाम मुन्नी देवी था।
- कविता करने की प्रवृत्ति उनमें बचपन से ही रही। सातवीं कक्षा तक क्वींस कॉलेज में अध्ययन किया।
- इसके बाद पिता का असामयिक निधन हो गया, अतः आगे की पढ़ाई उर्दू, हिन्दी, संस्कृत एवं अंगरेजी विषय के साथ घर पर ही हुई।
- पारिवारिक समस्याओं का सामना करते हुए भी आपने स्वाध्याय जारी रखा।
- प्रसाद जी की मित्रता अपने समय के ख्याति प्राप्त लोगों से रही, जिनमें राय कृष्णदास, केदारनाथ पाठक, मैथिलीशरण गुप्त, पंत, निराला, प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा, जैनेन्द्र आदि प्रमुख हैं। प्रसाद जी प्रतिभा एवं कौशल के धनी होने के साथ स्वभाव से विनम्र थे।
- अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के साथ परिश्रमी स्वभाव इनकी विशेषता रही है।
- प्रसादजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी लेखनी ने कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास एवं निबंध आदि सभी विधाओं को समृद्ध किया है।
- प्रसादजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी लेखनी ने कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास एवं निबंध आदि सभी विधाओं को समृद्ध किया है।
उनकी काव्य रचनाएं निम्नलिखित हैं -
मुक्तक काव्य संग्रह
- 1. चित्राधार (ब्रजभाषा में),
- 2. कानन कुसुम (खड़ी बोली हिंदी का प्रथम संग्रह),
- 3. झरना (25 कविताएं, बाद में 55),
- 4. लहर (43 कविताएं)
प्रबंध काव्य
- 1. प्रेम राज्य, 2. वनमिलन, 3. अयोध्या का उद्धार, 4. शोकोच्छवास, 5. प्रेम पथिक (पहले ब्रज भाषा में तथा बाद में खड़ी बोली में प्रकाशन), 6. महाराणा का महत्त्व, 7. आँसू, 8. कामायनी (महाकाव्य)।
- 'कामायनी' महाकाव्य पर इन्हें 'मंगला प्रसाद पारितोषिक' भी प्राप्त हुआ।
नाटक
- 1. सज्जन, 2. कल्याणी, 3. करुणालय, 4. विशाख, 5. अजातशत्रु, 6. जनमेजय का नाग यज्ञ, 7. कामना, 8. स्कन्दगुप्त, 9. एक घूँट, 10. चन्द्रगुप्त, 11. ध्रुवस्वामिनी।
कहानियां
- पाँच कहानी संग्रह हैं- 1. छाया, 2. प्रतिध्वनि, 3. आकाशदीप, 4. आँधी, 5. इन्द्रजाल।
उपन्यास
- कुल तीन उपन्यास लिखे जिनमें एक अधूरा रहा - 1. कंकाल, 2. तितली 3. इरावती (अधूरा)
निबंध
- साहित्यिक निबन्ध - 1. प्रकृति सौन्दर्य, 2. भक्ति, 3. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, 4. सरोज, 5. हिंदी कविता का विकास।
- ऐतिहासिक निबन्ध - 1. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, 2. मौर्यों का राज्य परिवर्तन, 3. आर्यावर्त का प्रथम सम्राट, 4. दशराज युद्ध।
- समीक्षात्मक निबन्ध - 1. चम्पू, 2. कवि और कविता, 3. कविता का रसास्वाद, 4. काव्य और कला, 5. रहस्यवाद, 6. रस, 7. नाटकों में रस का प्रयोग, 8. नाटकों का प्रारम्भ, 9. रंगमंच इत्यादि।
प्रसाद छायावाद के प्रणेताओं में से एक कवि हैं। मूलतः प्रेम और सौंदर्य के कवि रहे हैं। इसके अलावा इनके काव्य में निम्नांकित विशेषताएं पाई जाती हैं -
- विषय की नवीनता
- नवीन कल्पनाएँ
- प्राकृतिक और मानवीय सौन्दर्य का चित्रण
- लाक्षणिक वक्रता
- भावनाओं का सूक्ष्म चित्रण
- रहस्यात्मकता आदि छायावादी विशेषताओं से युक्त
- सौंदर्य चेतना के साथ भारतीय इतिहास, दर्शन और संस्कृति के प्रति अनुराग तथा
- राष्ट्रीय चेतना
- इस प्रकार प्रसाद के काव्य में छायावादी सौन्दर्यपरकता एवं भावुकता के साथ भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल पक्षों और इतिहास के गौरवपूर्ण पन्नों का उजला रंग भी मिलता है जो राष्ट्रवादी भावनाओं को जाग्रत करता है।
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