Indian History
अलाउद्दीन की बाजार नियन्त्रण नीति का मूल्यांकन
- अलाउद्दीन ने जिस उद्देश्य के लिए बाजार नियन्त्रण नीति को अपनाया था, उसमें वह सफल रहा। मूल्यों को नियन्त्रित करके वह एक विशाल सेना रखने में सफल रहा। अतः स्पष्ट है कि उसकी बाजार नियन्त्रण नीति सफल रही थी। बरनी ने इस नीति की सफलता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि यह नियमों के कठोरतापूर्वक लागू किये जाने, राजस्व को कठोरता से वसूलने, धातु के सिक्कों का अभाव व सुल्तान के भय से कर्मचारियों व अधिकारियों की ईमानदारी की वजह से सफल हुई।
- प्रो.हबीब व निजामी ने इस नीति की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि ‘जब तक अलाउद्दीन जीवित रहा, इन मूल्यों में तनिक भी वृद्धि न हुई। चाहे वर्षा हो या न हो, गल्ला मण्डी में भाव की स्थिरता उस युग की अद्भत घटना थी।’
- बरनी ने भी अलाउद्दीन की बाजार नियन्त्रण नीति की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ‘अलाउद्दीन के युग का सबसे बड़ा चमत्कार वस्तुओं के मूल्योंका नियन्त्रण था। यदि अलाउद्दीन के समय में सदैव वर्षा अच्छी हुई होती, तो यह एक साधारण बात होती, किन्तु अलाउद्दीन के समय में वर्षा की कमी अनेक बार दिखायी दी तथा अकाल के समय में भी न तो मूल्यों में वृद्धि हुई और न ही अनाज की कमी।’
गुण:
- अलाउद्दीन की बाजार नियन्त्रण नीति कई दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। इस नीति से निम्नलिखित प्रमुख लाभ हुए: -
- अलाउद्दीन अपने उद्देश्य में सफल रहा। बिना वेतन बढ़ाये एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना का संगठन करना, इसी नीति के कारण सम्भव हो सका।
- अकाल, दुर्भिक्ष व सूखे के दिनों में भी अनाज का उचित भण्डार होने से अन्न की कमी नहीं हुई। अन्न की कमी न होने से मूल्य स्थिर रहे। इस प्रकार जनता को उन कष्टों का सामना नहीं करना पड़ा, जोकि साधारणतया अकाल के दिनों में करना पड़ता था।
- मूल्यों की कमी होने से गरीब वर्ग को लाभ हुए।
- अमीरों, जमींदारों व बड़े व्यापारियों की शक्ति पर अंकुश लग गया। अब वे विलासी जीवन व्यतीत नहीं कर सकते थे।
- कठोर नीति अपनाने के कारण भ्रष्टाचार समाप्त हो गया। इससे जनता का जीवन सुखमय हुआ। डॉ. के.एस. लाल ने अलाउद्दीन की नीति की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ‘प्रबन्धक के रूप में अलाउद्दीन अपने पूर्ववर्ती शासकों से अवश्य ही श्रेष्ठ था और प्रशासनिक क्षेत्र में उसकी सफलताएं उसके रणभूमि के कार्यों से अधिक महान है।’
- डॉ. लाल ने पुनः लिखा है कि अलाउद्दीन की सफलता भावों को कम करने में उतनी नहीं जितनी कि लम्बे समय तक मूल्यों को नियन्त्रित रखने में है।
- अलाउद्दीन की बाजार नियन्त्रण प्रणाली में अनेक दोष भी थे। अनेक इतिहासकारों ने इस नीति की कटु आलोचना की है।
- डॉ. सरन ने लिखा है, ‘अलाउद्दीन की इस व्यवस्था से केवल एक ही निष्कर्ष निकलता है कि यह तर्कहीन, बनावटी एवं गलत थी। यह उन समस्त आर्थिक नियमों का उल्लंघन था जिन पर सरकार के हित आधारित होते हैं। इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वाले लोगों को जिस निर्धनता, संकट व अपमान का सामना करना पड़ा, उसका अनुमान भी लगाना कठिन है।’
बाजार नियन्त्रण नीति में निम्न मुख्य दोष थे -
- किसानों की स्थिति शोचनीय हो गयी। करों के भार से उनकी दशा पहले ही विशेष अच्छी नहीं थी। अब सस्ते मूल्य पर अन्न बेचने से उनकी स्थिति पहले से भी अधिक खराब हो गयी।
- अधिकांश किसान हिन्दू थे, अतः हिन्दुओं का जीवन-निर्वाह करना कठिन हो गया।
- इस नीति से व्यापार की अत्यधिक हानि हुई, क्योंकि व्यापारियों के लिए लाभ का अंश थोड़ा होता था। अतः व्यापार करने में कोई प्रोत्साहित करने वाला तत्व न रहा।
- कठोर दण्ड नीति के कारण भी लोग व्यापार करने से घबराने लगे। छोटे-छोटे अपराध के लिए कठोर दण्ड दिये जाते थे। इसके अतिरिक्त व्यापारियों को अपने बीबी-बच्चों को दिल्ली में रखना आवश्यक था, ताकि व्यापारी सरकार के साथ धोखा न कर सकें। धोखा करने वाले व्यापारी के परिवार को भी कठोर दण्ड दिया जाता था।
- व्यापार की उन्नति के लिए प्रतिस्पर्धा आवश्यक होती है। बाजार नियन्त्रण नीति ने व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर दिया।
- इस प्रकार सुल्तान की बाजार नियन्त्रण नीति से प्रत्येक वर्ग, चाहे वह कृषक, व्यापारी, हिन्दू, अमीर, जमींदार कोई भी क्यों न हो, असन्तुष्ट था। अतः धीरे-धीरे प्रजा में असन्तोष बढ़ने लगा। अलाउद्दीन की बाजार नियन्त्रण नीति की कमजोरी यह थी कि यह अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित नहीं थी। बरनी के अनुसार, बाजार सुधार केवल दिल्ली में ही लागू हुई थी। इस प्रकार अलाउद्दीन के बाजार सुधार वस्तुतः अस्थायी प्रवृत्ति के थे। अतः अलाउद्दीन की मृत्यु के साथ ही इस व्यवस्था का पतन हो गया।
- विद्वानों में इस विषय में मतभेद है कि बाजार नियन्त्रण की यह व्यवस्था अलाउद्दीन के सम्पूर्ण राज्य में लागू थी, अथवा मात्र राजधानी दिल्ली में। अधिकांश इतिहासकारों का विचार है कि यह व्यवस्था मात्र दिल्ली के लिए ही थी। डॉ. के.एस. लाल ने भी इसी मत का समर्थन किया।
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