ब्राह्मण ग्रंथ

ब्राह्मण ग्रंथ



  • संहिता के पश्चात् वैदिक साहित्य में ब्राह्मण ग्रंथों का स्थान आता है।
  • इनकी रचना यज्ञादि विधानों के प्रतिपादन तथा उनकी क्रिया को समझाने के उद्देश्य से की गयी थी। चूंकि 'ब्रह्म' का शब्दार्थ 'यज्ञ' होता है। अत: यज्ञीय विषयों के प्रतिपादन ग्रंथ 'ब्राह्मण' कहे गये।
  • संहिता (वेद) ग्रंथ जहाँ स्तुति प्रधान हैं, वहीं ब्राह्मण ग्रंथ विधि प्रधान हैं, जो अधिकांशत: गद्य में लिखे गये हैं।
  • ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, आधि भौतिक तथा आध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी हैं।
  • इनसे उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त होता है।


ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ


ऐतरेय ब्राह्मण

  • यह ऋग्वेद की शाकल शाखा से सम्बद्ध है।
  • इसमें 8 खण्ड, 40 अध्याय तथा 285 कण्डिकाएं हैं। 
  • इसकी रचना महिदास ऐतरेय द्वारा की गई थी, जिस पर सायणाचार्य ने अपना भाष्य लिखा है।
  • उस समय पूर्व में विदेह जाति का जबकि पश्चिम में नीच्य और अपाच्य राज्य थे।
  • उत्तर में कुरु और उत्तर मद्र का तथा दक्षिण में भोज्य राज्य था।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम दिए गए हैं। इसके अंतिम भाग में पुरोहित का विशेष महत्व निरूपित किया गया है।


कौ​षीतकी ब्राह्मण 

  • इसे शंखायन ब्राह्मण कहते हैं।
  • रचना — शंखायन अथवा कौ​षीतकी ने (शंखायन के गुरु)
  • यह ऋग्वेद की वाष्कल शाखा से संबंधित है। 
  • 30 अध्याय, 226 खण्ड है।
  • मानवीय आचार के नियम और निर्देश दिए गए हैं।


यजुर्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ

शतपथ ब्राह्मण 

  • यह शुक्ल यजुर्वेद की दोनों शाखाओं (काण्व व माध्यन्दिनी) से सम्बद्ध है।
  • सभी ब्राह्मण ग्रंथों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। 
  • इसके रचयिता याज्ञवल्क्य हैं।
  • 14 काण्ड एवं 100 अध्याय हैं जिसमें विभिन्न प्रकार के यज्ञों का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन मिलता है।
  • 6 से 10 काण्ड तक को शण्डिल्य काण्ड कहते हैं। इसमें गांधार, कैकय और शाल्व जनपदों की विशेष चर्चा की गई है। 
  • अन्य काण्डों में आर्यावर्त के मध्य त​था पूर्वी भाग कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह, सृजन्य आदि जनपदों का उल्लेख है। 
  • इसमें वैदिक संस्कृत के सारस्वत मण्डल से पूर्व की ओर प्रसार के संकेत मिलता है।
  • इसमें यज्ञों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कृत्य बताया गया है। 
  • अश्वमेध यज्ञ के संदर्भ में अनेक प्राचीन सम्राटों का उल्लेख है, जिसमें जनक, दुष्यंत और जनमेजय का नाम महत्वपूर्ण है। 


तैत्तिरीय ब्राह्मण

  • यह कृष्ण यजुर्वेद की शाखाओं से संबंधित है। 
  • इसके अनुसार मनुष्य का आचरण देवों के समान होना चाहिए।
  • इसमें मन को ही सर्वोच्च प्रजापति बताया है।


सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ

ताण्ड्य ब्राह्मण 

  • ताण्ड्य नामक आचार्य द्वारा रचे जाने के कारण इसे ताण्ड्य ब्राह्मण कहा गया। विशालता के कारण महाब्राह्मण कहते हैं।
  • इसमें 25 अ​ध्याय होने के कारण — पंचविश कहलाता है।
  • इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय सोमयाग है।
  • सरस्वती के पुन: विलुप्त होने तथा पुन: प्रकट होने का उल्लेख मिलता है।


षड्विंश ब्राह्मण ग्रंथ

  • यह सामवेद के कौथुम शाखा से संबंधित है।
  • सायण ने इसे अपने भाष्य में ताण्डक कोष कहा है।
  • इसमें पंचम प्रपाठक को अद्भूत ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इसमें भूकंप, अकाल आदि का वर्णन किया गया है।


जैमिनीय ब्राह्मण ग्रंथ

  • यह तीन भागों में विभक्त है। इसमें कुल 1182 खण्ड है। 
  • सूक्ति- ऊंचे मत बोलो, भूमि अथवा दीवार के भी कान होते हैं। 
  • वंश ब्राह्मण में सामवेद के ऋ​षियों की वंशावली है। 
  • सामविधान ब्राह्मण में विविध अनुष्ठानों का वर्णन एवं टोने-जादू से संबंधित बाते हैं।


अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रंथ

गोपथ ब्राह्मण 

  • अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रंथ गोपथ 'गोपथ ऋषि' द्वारा रचित है।
  • गोपथ ब्राह्मण ग्रंथ में अग्निष्टोम, अश्वमेध जैसे यज्ञों के विधि—विधान के अतिरिक्त ओमकार तथा गायत्री मंत्र की भी महिमा का वर्णन है। 
  • कैवल्य की अवधारणा का उल्लेख इसी ब्राह्मण ग्रंथ में है।


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