सम्राट अशोक से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
सम्राट अशोक का इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत हैं?
- उसके अभिलेख
अशोक के शिलालेखों कितने स्थानों से प्राप्त हुए हैं?
- 8 स्थानों से, जो शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है।
अशोक के शिलालेख किन—किन स्थानों से प्राप्त हुए?
- शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा, कालसी, गिरनार, धौली, जौगढ़, एरीगुडी और सोपारा।
अशोक के अधिकांश अभिलेख की भाषा एवं लिपि है?
- प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि
अशोक के कौन से अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं?
- शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है।
शरेकुना नामक स्थान से मिले अशोक का अभिलेख की लिपी है?
- यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया।
अरामेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख कहां प्राप्त हुआ है?
- लघमान नामक स्थान से
अशोक के किसी अभिलेख में पशु बलि को निषेध बताया है?
- प्रथम शिलालेख
"यहां कोई जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई उत्सव किया जाए।" यह कथन किस शिलालेख में है?
- प्रथम शिलालेख में
अशोक के दूसरे शिलालेख में संगम राज्यों की जानकारी मिलती है?
- चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रपर्णी (श्रीलंका)
अशोक के लघु शिलालेख निम्न में किस स्थान पर प्राप्त हुए नहीं हुआ?
अ. गुर्जरा
ब. भाब्रू
स. गिरनार
द. अहरौरा
उत्तर— स
व्याख्या: अशोक के चौदह बृहद् शिलालेखों के अतिरिक्त लघु शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। ये स्थान निम्न हैं- रूपनाथ, गुर्जरा, सहसाराम, भाब्रू, मास्की, ब्रह्मगिरि, सिद्धपुर, जटिंग-रामेश्वर, एर्रगुडि, गोविमठ, पालकिगुण्डु, राजुल मण्डगिरि, अहरौरा, सारोमारो, नेतूर, उडेगोलम तथा पनगुडरिया।
अशोक का व्यक्तिगत नाम किन लघु शिलालेख में मिलता है?
- मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर तथा उडेगोलम के लेखों में
निम्न में से किस लघु शिलालेख में से अशोक का व्यक्तिगत नाम (अशोक) नहीं मिलता है?
अ. मास्की
ब. भाब्रू
स. गुर्जरा
द. नेत्तूर
उत्तर- ब
अशोक के स्तंभ लेख में किसका उल्लेख मिलता है?
- धम्म एवं प्रशासनिक नियमों का उल्लेख है
बृहद् स्तंभ लेख कितने हैं?
- बृहद् स्तंभ लेख सात हैं।
- जो छः भिन्न-भिन्न स्थानों में पाषाण स्तंभों पर उत्कीर्ण पाए गए हैं।
- दिल्ली-टोपरा, दिल्ली-मेरठ, लौरिया अरराज, लौरिया नंदनगढ़, रमपुरवा तथा प्रयाग।
अशोक 'धम्म क्या है?' का उल्लेख किस स्तंभ लेख में किया है?
- दूसरे स्तंभ लेख में
'लघु स्तंभ लेख' पर अशोक ने क्या उत्कीर्ण करवाएं हैं?
- राजकीय घोषणाओं को उत्कीर्ण
- ये निम्न स्थानों से मिले हैं: सांची, सारनाथ, कौशाम्बी, रुम्मिनदेई तथा निग्लीवा।
महामात्रों को संघ-भेद रोकने का आदेश अशोक ने अपने सांची सारनाथ के लघु स्तंभ लेख में दिया है।
अशोक की रानी कारुवाकी द्वारा दान दिए जाने का उल्लेख कौशाम्बी तथा प्रयाग के स्तंभों में है। इसे 'रानी का अभिलेख' भी कहा जाता है।
कनकमुनि के स्तूप के संवर्द्धन का उल्लेख निग्लीवा के लेख में है।
लुम्बिनी लेख में बुद्ध को "शाक्यमुनि' कहा गया है।
बिहार के गया जिले में स्थित 'बराबर' नामक पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले हैं।
इनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के निवास के लिए गुहा दान दिए जाने का उल्लेख है।
इन गुहा लेखों की भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी है।
दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ी पर आजीवक संप्रदाय के साधुओं के निवास के लिए तीन गुफाएं निर्मित करवाई थी।
परवर्ती मौर्य सम्राट
पुराणों के अनुसार, अशोक ने कुल 37 वर्षों तक शासन किया।
पुराणों में अशोक के पश्चात शासन करने वाले लगभग 10 राजाओं के नामों का उल्लेख है।
तारानाथ ने केवल तीन मौर्य शासकों का उल्लेख किया है कुणाल, विगताशोक तथा वीरसेन।
राजतरंगिणी के अनुसार, कश्मीर में अशोक उत्तराधिकारी जालौक था, जो शैव था।
पुराणों के अनुसार, दशरथ ने कुल आठ वर्षों तक शासन किया।
उसके पश्चात उसका पुत्र संप्रति शासक हुआ।
सभी पुराण बृहद्रथ को ही मौर्य वंश का अंतिम शासक मानते हैं।
उसे 'प्रज्ञादुर्बल' (बुद्धिहीन) शासक कहा गया है।
184 ई.पू. के लगभग पुष्यमित्र ने सेना निरीक्षण करते समय धोखे से बृहद्रथ की हत्या कर दी थी।
मौर्यकालीन संस्कृति
प्रशासन
कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग सिद्धांत में राज्य को सात तत्वों (अंग) से निर्मित माना है।
राज्य के सप्तांग हैं- सम्राट (स्वामी), आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, बल तथा मित्र।
वह राज्य के सप्तांगों में सम्राट (स्वामी) को ही सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है।
अर्थशास्त्र में राजा के मंत्रिपरिषद का उल्लेख है।
मंत्रिपरिषद के सदस्यों को 12,000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।
अर्थशास्त्र में मंत्रिणः का भी उल्लेख मिलता है।
'मंत्रिणः' के सदस्यों को 48,000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।
शासन की सुविधा के लिए केंद्रीय प्रशासन अनेक विभागों में बंटा हुआ था।
प्रत्येक विभाग को 'तीर्थ' कहा जाता था।
अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों का उल्लेख है। ये हैं मंत्री और पुरोहित, समाहर्ता, सन्निधाता, सेनापति, युवराज, प्रदेष्टा, नायक, कर्मान्तिक, व्यवहारिक, मंत्रिपरिषदाध्यक्ष, दंडपाल, अंतपाल, दुर्गपाल, नागरक, प्रशास्ता, दौवारिक, अंतर्वशिक तथा आटविका।
अर्थशास्त्र में विभागीय अध्यक्षों का उल्लेख हुआ है।
संभवतः इन अध्यक्षों को ही यूनानी लेखकों ने 'मजिस्ट्रेट' कहा है।
प्रमुख विभागों के अध्यक्ष
पण्याध्यक्ष — वाणिज्य विभाग का अध्यक्ष
सूनाच्यक्ष— बूचड़खाने का अध्यक्ष
सीताध्यक्ष — राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष
वीवीताध्यक्ष — चारागाह का अध्यक्ष
मुद्राध्यक्ष — पासपोर्ट विभाग का अध्यक्ष
पत्तन अध्यक्ष — बंदरगाहों का अध्यक्ष
संस्थाध्यक्ष — व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष
नवाध्यक्ष — जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष
देवताध्यक्ष — धार्मिक संस्थाओं का अध्यक्ष
आकराच्यक्ष — खानों का अध्यक्ष
लक्षणाध्यक्ष — छापेखाने का अध्यक्ष
अशोक के समय पांच प्रांतों का उल्लेख मिलता है।
अशोककालीन प्रांत एवं उसकी राजधानी
प्रांत राजधानी
उत्तरापथ — तक्षशिला
दक्षिणापथ — सुवर्णगिरि
प्राच्य या प्रासी — पाटलिपुत्र
कलिंग — तोसलि
अवंतिरट्ठ — उज्जयिनी
मेगस्थनीज कृत 'इंडिका' में पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन मिलता है।
उसने नगर के प्रमुख अधिकारी को 'एस्टिनोमोई' कहा है।
वह जिले के अधिकारी को एग्रोनोमोई कहता है।
अर्थशास्त्र के अनुसार, 'नागरक' नगर का प्रमुख अधिकारी था।
'ग्राम', प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
ग्राम का अध्यक्ष 'ग्रामणी' होता था।
गुप्तचर के अतिरिक्त शांति व्यवस्था बनाए रखने तथा अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस थी, जिसे अर्थशास्त्र में 'रक्षिन' कहा गया है
भूमि कर को 'भाग' कहा जाता था।
राजकीय भूमि से प्राप्त आय को 'सीता' कहा जाता था।
सामाजिक दशा
भारतीय समाज में सात वर्गों का उल्लेख मेगस्थनीज ने किया है। ये हैं-दार्शनिक, कृषक, योद्धा, पशुपालक, कारीगर, निरीक्षक और मंत्री।
मेगस्थनीज भारतीय समाज में दास प्रथा के प्रचलित होने का उल्लेख नहीं किया है, जबकि अर्थशास्त्र में इसका उल्लेख है।
समाज में संयुक्त परिवार की प्रथा थी।
16 वर्ष लड़कों की वयस्कता की आयु, जबकि कन्याओं के लिए 12 वर्ष होती थी।
अर्थशास्त्र में स्त्री के लिए 'असूर्यपश्या (सूर्य को न देखने वाली), 'अवरोधन' तथा 'अंत:पुर' शब्द का प्रयोग हुआ है।
आर्थिक दशा
मौर्य काल में कृषि को राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया जाता था।
इस समय की प्रमुख फसलें थीं- गेहूं, जौ, चना, चावल, ईख, तिल, सरसों।
सिंचाई की उत्तम व्यवस्था थी।
सुराष्ट्र प्रांत में सुदर्शन झील का निर्माण किसने करवाया था?
अ. समुद्रगुप्त
ब. चंद्रगुप्त
स. अशोक
द. बिन्दुसार
उत्तर— ब
व्याख्या—
- सुदर्शन झील, गिरनार नामक पहाड़ी के मध्य सौराष्ट्र में स्थित है।
- इस झील का निर्माण मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के आदेश से हुआ था।
- इस झील का निर्माण राज्यपाल 'पुष्यगुप्त वैश्य' ने अपने गिरनार में किया था।
- सम्राट अशोक के आदेश से उनके महान गुरु तुषप ने इस झील का पुनर्निर्माण किया और इसे बेहतर बनाया।
- स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ अभिलेख में सुदर्शन झील के पुनर्निर्माण की जानकारी प्राप्त होती है। स्कन्दगुप्त के आदेश पर ही वहां के पुरपति चक्रपालित (गवर्नर पर्णदत्त का पुत्र) ने इस झील के तटबंध की मरम्मत करवाई।
'कौसेय' शब्द का प्रयोग किया गया है?
अ. कपास के लिये
ब. सन के लिये
स. रेशम के लिये
द. ऊन के लिये
उत्तर— स
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