History
बौद्ध साहित्य
- गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी शिक्षाओं को विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित कर तीन पिटको (पिटारियों) में विभाजित किया गया - (क) विनय पिटक (2) सुत्त पिटक (3) अभिधम्म पिटक।
- सम्मिलित रूप से इन्हें त्रिपिटक की संज्ञा दी गई।
- त्रिपिटक पालि भाषा में लिखे गये।
त्रिपिटकों का विवरण निम्नवत हैं—
1. विनय पिटक
- इसमें भिक्षु जीवन व संघ संबंधी नियमों, दैनिक आचार-विचार व विधि-निषेधों का संग्रह है, इसके निम्न भाग हैं-
(क) पातिमोक्ख (प्रति मोक्ष)
- इसमें अनुशासन संबन्धी विधानों तथा उनके उल्लंघन पर किए जाने वाले प्रायश्चितों का संकलन हैं।
(ख) सुत्त विभंग
- सुत्त बिभंग का शाब्दिक अर्थ है- सूत्रों (पाति मोक्ख के सूत्र) पर टीका।
- इसके दो भाग है- (1) महाविभंग में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एवं (2) भिक्खुनी बिभंग में बौद्ध भिक्षुणियों हेतु नियमों का उल्लेख है।
(ग) खंधक
- इसमें संघीय जीवन संबंधी विधि-निषेधों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसके दो भाग है—
- महावग्ग में संघ के अत्यधिक महत्वपूर्ण विषयों का उल्लेख है। इसमें कुल 10 अध्याय है।
- चुल्लवग्ग में 12 अध्याय है। इसमें वर्णित विषय कम महत्वपूर्ण है।
(घ) परिवार
- यह प्रश्नोत्तर क्रम में हैं। यह विनय पिटक का अंतिम भाग है।
2. सुत्त पिटक
- सुत्त का शाब्दिक अर्थ है -धर्मोपदेश।
- बुद्ध के धार्मिक विचारों एवं उपदेशों के संग्रह वाला गद्य-पद्य मिश्रित यह पिटक संभवत: त्रिपिटकों में सर्वाधिक बड़ा एवं श्रेष्ठ है। जिनका वाचन प्रथम बौद्ध संगीति के अवसर पर आनन्द द्वारा किया गया।
यह पिटक पाँच निकायों में विभाजित हैं, जो इस प्रकार है-
(क) दीघनिकाय -
- गद्य एवं पद्य दोनों में रचित इस निकाय में बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का समर्थन एवं अन्य धर्मों के सिद्धान्तों का खण्डन किया गया है।
- इस निकाय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुत्त हैं- महापरिनिब्बान सुत्त।
- इस निकाय में महात्मा बुद्ध के जीवन के आखिरी जीवन, अन्तिम उपदेशों, मृत्यु तथा अन्त्येष्टि का वर्णन किया गया। इसमें महात्मा बुद्ध के विभिन्न संवाद संकलित है जिनके माध्यम से यज्ञों की अनुपयोगिता, जन्म के आधार पर वर्ण का निर्धारण या गुण के आधार पर इस पर विचार, पुनर्जन्म, निर्वाण व सदाचारिता के नियमों का विवेचन है।
- इसके 3 खण्ड हैं व कुल मिलाकर 34 दीर्घाकार सुत्त है।
- सुत्तपिटक को बौद्ध धर्म का 'इनसाइक्लोपीडिया' भी कहा जाता है।
(ख) मज्झिम निकाय
- इसमें मध्यम आकार के 125 सुत्त है। इस निकाय में महात्मा बुद्ध को कहीं साधारण मनुष्य के रूप में, तो कहीं अलौकिक शक्ति वाले दैव रूप में वर्णित किया गया है।
(ग) संयुक्त निकाय
- इसमें 56 सुत्त है।
(घ) अंगुत्तर निकाय
- इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
(ड.) खुद्दक निकाय
- भाषा, विषय एवं शैली की दृष्टि से सभी निकायों से अलग लघु ग्रंथों के संकलन वाला यह निकाय अपने आप में स्वतंत्र एवं पूर्ण है।
- इसके कुछ ग्रंथ प्रकार है- खुद्दक पाठ, धम्मपद, उदान, इतिबुत्तक सुत्तनिपात, विमानवत्थु, पेतवत्थु, थेरगाथा, थेरीगाथा, जातक, निद्देश, पतिसंभिदामग्ड़ा, अपदान, बुद्धवंश तथा चरियापिटक।
धम्मपद
- सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय से सम्बन्धित ग्रंथ जिसे बौद्ध ग्रंथ की गीता कहा गया है।
जातक साहित्य
- सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय से सम्बन्धित ग्रंथ जिसमें बुद्ध के पूर्वजन्म की 550 कहानियों का संग्रह है। यद्यपि मौलिक जातक साहित्य विलुप्त हो चुका है। परंतु इनसे संबंधित ज्ञान व साक्ष्य जातकों पर लिखित टीका जातक टट्ठवण्ना से होता है।
- छठी शताब्दी ई. पू. के विभिन्न पक्षों मुख्यतः सामाजिक, आर्थिक, परिवेश को जानने की दृष्टि से इनका ऐतिहासिक महत्व है।
- प्रसिद्ध विद्वान रीज डेविड में अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ Budhishtindia में इसके आधार पर छठी शताब्दी ई. पू. के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
- प्रमुख महाजनक जातक कथाएं— कौशाम्बी जातक, दशरथ जातक, महाजनक जातक, गांधार जातक, उदीयन जातक, शंख जातक, लोषक जातक।
3. अभिधम्म पिटक
- 'अभि' का शाब्दिक अर्थ है उच्चतर, अत: अभिधम्मपिटक से आशय है वह पिटक जिसमें बौद्ध धर्म की दार्शनिक व उच्च शिक्षाओं का प्रश्नोत्तर रूप में विवेचन है।
- बौद्ध परम्परा की ऐसी मान्यता है कि इस पिटक का संकलन अशोक के समय में सम्पन्न तृतीय बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने किया। इसमें सात ग्रंथ सम्मिलित है।
- धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गल पंचति, कथावत्थु, यमक तथा पद्वान (पत्थान) है। इन्हें सत्तपकरण कहा जाता है।
कथावत्थु (कथावस्तु) -
- अभिधम्म पिटक से सम्बन्धित महत्वपूर्ण ग्रंथ जिस की रचना तीसरी बौद्ध संगीति के अवसर पर मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा की गई।
- त्रिपिटकों के अतिरिक्त पालि भाषा में लिखित अन्य बौद्ध ग्रंथों में भी बौद्ध धर्म का विवरण मिलता है।
मिलिन्दपन्हो
- नागसेन कृत इस ग्रंथ से ईसा की प्रथम दो शताब्दियों के भारतीय जन-जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। इसमें यूनानी नरेश मिनेण्डर (मिलिन्द) एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच बौद्ध मत पर वार्तालाप का वर्णन है।
सिंहली अनुश्रुतियाँ
(1) दीपवंश
- यह सिंहली (श्रीलंका) बौद्ध ग्रंथ।
- इसकी भाषा पाली है व समय 5वीं शताब्दी ई. है। इसमें सिंहल द्वीप के साथ—साथ बौद्ध धर्म से संबंधित कई तथ्यों की जानकारी मिलती है। अशोक के संबंध में भी कई महत्वपूर्ण सूचनाऐं प्रदत्त है।
(2) महावंश
- भदंत महानामा द्वारा विरचित सिंहली बौद्ध ग्रंथ, भाषा पाली व समय 4-5वीं शताब्दी ई. के आसपास है।
- श्रीलंका व बौद्ध धर्म के साथ-साथ अशोक के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी विदित हैं। इसी के आधार पर कालांतर में महावंशटीका नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की गई। जिसे वंशत्थप्यकासिनी कहा गया है।
संस्कृत बौद्ध ग्रंथ
महावस्तु
- हीनयान से संबंधित महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ जो महायान की विशेषताओं से परिपूर्ण हैं। इसमें बुद्ध को अद्भुत शक्ति समन्वित रूप में प्रस्तुत पर किया गया है।
- अर्हतपद के स्थान पर बोधिसत्व की प्रतिष्ठा, जो महायान का प्रमुख सिद्धान्त है।
- निर्वाण न केवल भिक्षुओं वरन् जनसामान्य हेतु भी सुलभ बताया गया है। महावस्तु वस्तुतः महात्मा बुद्ध का जीवनवृत है।
ललितविस्तार
- महामान संप्रदाय के ग्रंथों में प्रथम उल्लेखनीय कृति जिसका अर्थ "महात्मा बुद्ध के ललित का विस्तार'' वर्णन है। भागवत् धर्म में कृष्ण की अवधारणा के अनुरूप ही इस ग्रंथ में बुद्ध के ऐहिक जीवन को क्रिडास्वरूप बताया गया है।
प्रमुख कथाकार
अश्वघोष
- संस्कृत बौद्ध लेखकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम कवि और नाटककार अश्वघोष का है।
- सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय के चिंतक अश्वघोष कनिष्क (प्रथम शती ई.) की राजसभा में थे। उनकी तीन प्रसिद्ध रचनायें हैं—
- बुद्ध चरित, सौन्दरानन्द तथा सारिपुत्त प्रकरण। प्रथम दो महाकाव्य तथा अंतिम नाट्य ग्रंथ है।
- भगवान तथागत, वज्रसूत्रि, सूत्रालंकार
वसुमित्र
- 'महाविभाषा', जिसकी रचना चौथी बौद्ध संगीति के अवसर पर की गई।
वसुबन्धु
- अभिधर्मकोष, विशान्तिका, त्रिशान्तिका
- अभिधर्म कोष — वसुबन्धु द्वारा विरचित महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ जिसे बौद्ध धर्म का Encyclopacdia कहा गया हैं।
नागार्जुन
- माध्यकारिका, प्रज्ञापारमिता सूत्र, शतसहस्त्रिका,
- प्रज्ञापारमिता सूत्र को देवताओं के दिमाग की संज्ञा दी गई है।
असंग
- योगाचार भूमिशास्त्र, महायान सूत्रालंकार, महायान अपरिग्रह
बुद्धघोष
- सामन्तपासादिका, विसुद्धिमग्ग, सुमंगल विलासिनी
- उल्लेखनीय है कि विसुद्धिमग्ग को त्रिपिटको की कुंजी कहा गया है।
- सामंतपासादिका को प्रसिद्ध विद्वान रीज डेविड ने ऐतिहासिक व अभिरूचि की खान बताया है।
- दिव्यावदान में परवर्ती मौर्य शासकों एवं शुंग राजा पुष्यमित्र शुंग का उल्लेख मिलता है।
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