'आषाढ़ का एक दिन' के पात्र

Aashadha ka ek din ke patra

  • यह मोहन राकेश का नाटक है, जिसकी रचना 1958 ई. में की। यह उनकी प्रथम कृति है। 

पुरुष पात्र  

  • कालिदास (Kalidas) , विलोम, मातुल और निक्षेप

महिला पात्र

  • मल्लिका (कालिदास की प्रेमिका), अम्बिका (मल्लिका की मां), प्रियंगुमंजरी (कालिदास की पत्नी और गुप्तवंश की परम विदुषीराजकुमारी)

गौण पात्र

  • दन्तुल, रंगिणी, संगिणी, अनुस्वार और अनुनासिक

सूच्य पात्र

  • वररूचि और गुप्त वंश सम्राट

Yaha Bhi Padhen

  • कालिदास के जीवन पर आधारित ऐतिहासिक नाटक है। मोहन राकेश को इस नाटक के प्रणयन की प्रेरणा महाकवि-कालिदास की रचनाओं से मिली है। इसमें इतिहास कम साहित्य और कल्पना अधिक है।
  • कथावस्तु महाकवि कालिदास के जीवन पर आधारित है।
  • नाटक में कालिदास और मल्लिका के उदात्त प्रेम का चित्रण किया गया हे।
  • कालिदास और मल्लिका एक ही गांव में रहते हैं। दोनों में प्रगाढ़ प्रेम है। कालिदास के काव्य की ख्याति सुनकर उज्जयिनी नरेश उसे अपना राजकवि बनाना चाहते हैं। कालिदास अनिच्छा व्यक्त करते है। परंतु मल्लिका उसे भेज देती है। वहां वे अनेक रचनाओं का सृजन करते हैं। उनका विवाह राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से हो जाता है। शासन कार्य में अरूचि होने के कारण पलायन कर मल्लिका के पास वापस आ जाते हैं। परंतु मल्लिका एक अन्य गांव के पुरुष विलोम के अविवाहित मां गन चुकी है। कालिदास निराश होकर पुन: पलायन कर जाते हैं।
  • 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक की कथावस्तु 3 अंकों में विभाजित है।
  • कथावस्तु का आरम्भ 'आषाढ़ के प्रथम दिन' से होता है।
  • कालिदास ने अविवाहित रहने का व्रत लिया है इसकारण मल्लिका ने भी चिर कुमारी रहने का निश्चय किया है।  
  • मातुल (Matul) व्यंग्यपूर्ण शब्दों में कहता है कि 'मैं राजकीय मुद्राओं से क्रीत होने के लिए नहीं हूं।'
  • मल्लिका चाहती है कि वह गांव के अभाव और अपवादपूर्ण जीवन को त्यागकर राजकीय सम्मान को ग्रहण करे ताकि उसकी प्रतिभा चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर सके।
  • प्रियंगुमंजरी कालिदास की पत्नी और गुप्तवंश की परम विदुषीराजकुमारी है।  वह कश्मीर का शासक बन जाता है।

मल्लिका का चरित्र-चित्रण (Mallika Ka charitra chitran)

  • मल्लिका का जीवन बिडम्बनाओं से भरा है। मां अम्बिका की मृत्यु के बाद उसका साहस टूट जाता है। दूसरी ओर ग्राम प्रांतर में आकर भी कालिदास का मल्लिका से न मिलना उसे गहरी निराशा में डुबा देता है।
  • भावनाओं में जीने वाली मल्लिका परिस्थितियों से हार जाती है। उसकी विषम परिस्थिति का लाभ विलोम उठाता है। गरीबी और मजबूरी उसे जीने नहीं देती है। वह विवश होकर विलोम के आगे समर्पण कर देती है। एक ओर वह कालिदास की प्रेयसी के रूप में अपवाद झेलती है, तो दूसरी ओर अविवाहित मातृत्व के भार को वहन करती है।
  • मल्लिका एक काल्पनिक पात्र है। यह मोहन राकेश की विशिष्ट कला सृष्टि हैं वह पवित्र प्रेम को समर्पित होते हुए भी परिस्थितियों वश पुरुष की शोषण-वृतियों का शिकार बनती है। 

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