सम्प्रेषण Communication

 सम्प्रेषण Communication 


संगठन के उद्देश्यों और नीतियों की सफलता के लिए प्रभावशाली सम्प्रेषण (संचार Communication) व्यवस्था आवश्यक है।
संगठन में आंतरिक सहयोग और समन्वय की प्राप्ति के लिए सम्प्रेषण व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है।

सम्प्रेषण कार्य सम्पादन को संभव बनाता है तथा प्रशासकों और अधिकारियों को समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक आधार प्रस्तुत करता है, सम्प्रेषण व्यवस्था को प्रशासन का 'प्रथम सिद्धांत' माना जाता है।

मिलट ने सम्प्रेषण को ''प्रशासकीय संगठन की रक्तधारा'' कहा है।
संप्रेषण को पिफनर ने ''प्रबन्ध का हृदय'' कहा है।

हर्बर्ट साइमन ने इसका महत्व बताते हुए लिखा है कि 'सम्प्रेषण के अभाव में संगठन संभव नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई भी ऐसा समूह नहीं रहेगा जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित कर सके।'

संचार साधनों के बल पर ही अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में हम 'एक विश्व' की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं।

सम्प्रेषण का अर्थ


लोक प्रशासन के संबंध में सम्प्रेषण का अर्थ अधिक व्यापक और विस्तृत है।
अंग्रेजी का 'Communication' शब्द लैटिन के Communis से बना है जो विचारों, सूचनाओं और संवादों की भिन्न-भिन्न स्थानों के व्यक्तियों के पास जाकर किसी विषय अथवा वस्तु के प्रति सामान्य भावना, साझेदारी अथवा सहभागिता उत्पन्न करता है।

इस प्रकार संचार का मूल अर्थ सूचना नहीं बल्कि समझना है।

मिलट ने सम्प्रेषण को 'किसी साझे के प्रयोजन की ''साझा-समझ'' (Shared Understanding for A Shared Purpose)' के रूप में परिभाषित किया है।

ऑडवे टीड के अुनसार
'सम्प्रेषण का मूल लक्ष्य समान विषयों पर मस्तिष्कों का मेल है।'

हर्बर्ट साइमन  के अुनसार
'सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निर्णयों को संगठन के एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुंचाया जा सके।'

थियो हेमैन के अुनसार 'सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएं एवं समझ हस्तान्तरित करने की प्रकिया है।'

लुई ए. ऐलन के अुनसार
'सम्प्रेषण एक व्यक्ति के मस्तिष्क को दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क से जोड़ने वाला पुल है।'

एफ.जी. मेयर के अुनसार
'मानवीय विचार और सम्मतियों को शब्दों, पत्रों एवं सन्देशों के माध्यम से आदान-प्रदान ही सम्प्रेषण है।'

न्यूमैन एवं समर के अुनसार
'सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, सम्मतियों अथवा भावनाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान है।'

पीटर एफ. ड्रकर के अुनसार
सम्प्रेषण किसी उद्यम के भीतर विभिन्न कार्यात्मक समूहों की वह क्षमता है, जिसके माध्यम से वे एक-दूसरे के कार्यों और चिन्ताओं को समझते हैं।

सी. जी. ब्राउन के अुनसार
सम्प्रेषण विचारों तथा भावनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्थानान्तरित करने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य सूचना पाने वाले व्यक्ति से समझ पैदा करना है।

कीथ डेविस के अुनसार
सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसमें सन्देश और समझ को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है।

इलियट जैम्बिस के अुनसार
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में जाने और अनजाने में व्यक्त की गई भावनाएं, प्रवृत्तियां और इच्छाएं सम्मिलित रूप से सम्प्रेषण है।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सम्प्रेषण या संचार एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने सन्देशों, विचारों, तर्कों, अपनी भावनाओं और सम्मतियों आदि का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं।
यह एक कला है जिसके माध्यम से सूचनाओं आदान-प्रदान होता है इसके लिए शब्दों, पत्रों हावभावों, मौन, चिह्नों अथवा अन्य उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।

सम्प्रेषण की विशेषताएं:

1. सम्प्रेषण एक सतत् प्रक्रिया है।
2. सम्प्रेषण में संन्देशों, विचारों, तर्कों, सूचनाओं, भावनाओं आदि का परस्पर विनिमय होता है।
3. सम्प्रेषण में अनेक माध्यमों (लिखित, मौखिक व साकेंतिक) का प्रयोग किया जा सकता है।
4. सम्प्रेषण की सफलता समय पर आधारित होती है।
5. सम्प्रेषण उर्ध्वगामी, अधोगामी या समतल हो सकता है।
6. सम्प्रेषण, प्रेषक, सूचना, माध्यम, प्राप्तकर्ता तथा प्रत्युत्तर इत्यदि तत्वों से युक्त होता है।

सम्प्रेषण के उद्देश्य:
1. आदेशों और निर्देर्शों, निर्णयों को सभी सम्बधित व्यक्तियों को सही तथा स्पष्ट पहुंचाना।
2. कार्यकर्ताओं को संस्था की प्रगति से अवगत करना।  
3. संगठन की नीतियों, योजनाओं और निर्णयों से कर्मचारियों को अवगत करना।
4. विचारों तथा सूचनाओं का स्वतंत्र आदान-प्रदान करना।
5. कर्मचारियों से आवश्यक सूचनाएं और सुझाव प्राप्त करना।
6. समुचित सम्प्रेषण व्यवस्था के माध्यम से संगठन में मधुर मानवीय सम्बन्धों का निर्माण करना।

सम्प्रेषण का महत्व


सम्प्रेषण संगठन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है और संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।
प्रभावी सम्प्रेषण के अभाव में प्रबंध की कल्पना तक नहीं की जा सकती है।

प्रशासन में सम्प्रेषण का महत्व

थियो हेमैन - सभी प्रबंधकीय कार्यों की सफलता सफल सम्प्रेषण पर निर्भर है।
पीटर्स - अच्छा सम्प्रेषण सुदृढ़ प्रबंध की नींव है।

पीटरसन तथा प्लोमैन - सम्प्रेषण प्रबंध का एक आवश्यक कार्य है।

एल्विन डॉड - संचार प्रबंध की मुख्य समस्या है।

जॉर्ज आर. टेरी - सम्प्रेषण उस चिकने तेल (Lubricating Oil) का कार्य करता है जिससे प्रबंध प्रक्रिया सुगम हो जाती है।'
कीथ डेविस के अनुसार, 'एक व्यवसाय के लिए सम्प्रेषण का उतना ही महत्व है जितना कि एक व्यक्ति के लिए रक्तधारा का है।'
1. सम्प्रेषण योजना के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन दोनों के लिए अनिवार्य है। अनेक प्रकार की सूचनाएं, तथ्य, आंकडे इसी के माध्यम से प्राप्त होते हैं।  
2. सम्प्रेषण के कारण संगठन में गतिशीलता तथा जीवंत वातावरण बना रहता है। चेस्टर आई. बर्नार्ड के शब्दों में, सम्प्रेषण की एक सुनिश्चत प्रणाली की आवश्यकता संगठनकर्ता का प्रथम कार्य है।
3. संगठन में समन्वय स्थापित करने का सशक्त उपकरण सम्प्रेषण होता है। न्यूमैन के अनुसार, 'अच्छा सम्प्रेषण समन्वय में सहायक होता है।'
मेरी कुशिंग नाइल्स के अनुसार, 'समन्वय हेतु अच्छा सम्प्रेषण अनिवार्य है।'
4. अच्छी सम्प्रेषण व्यवस्था के अभाव में संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति की कल्पना व्यर्थ है। चेस्टर आई. बर्नार्ड के शब्दों में, -
'सम्प्रेषण वह साधन है जिसके द्वारा किसी संगठन में व्यक्तियों को एक समान उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु परस्पर संयोजित किया जा सकता है।'
5. कार्मिकों में अभिप्रेरणा, प्रोत्साहन, मनोबल उत्पन्न करने हेतु अच्छे सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है। पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार— 'सूचनाएं प्रबंध का एक विशेष अस्त्र है। प्रबंधक, व्यक्तियों को हांकने का कार्य नहीं करता वरन् वह उनको अभिप्रेरित, निर्देशित और संगठित करता है। ये सभी कार्य करने हेतु मौखिक अथवा लिखित शब्द अथवा आंखों की भाषा ही उसका एकमात्र औजार होती है।'
6. संगठनात्मक कार्यकुशलता, प्रभावशीलता, संगठनात्मक विकास, सुधार एवं नवाचार, हेतु सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।
7. सही समय पर सही निर्णय लेने हेतु पर्याप्त तथ्यों और आंकड़ों की आवश्यकता होती है। यह कार्य भी प्रभावी सम्प्रेषण प्रणाली द्वारा ही संभव है।
8. अच्छी सम्प्रेषण व्यवस्था के माध्यम से प्रभावी नियंत्रण संभव हो पाता है।
9. कुशल सम्प्रेषण व्यवस्था कार्मिकों में समूह भावना का विकास करती है। उनकी कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि करती है।

इस प्रकार सम्प्रेषण की महत्ता को स्पष्ट करते हुए थियो हैमेन ने लिखा है कि 'प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता, कुशल सम्प्रेषण प्रणाली पर आधिारित होती है।'

सम्प्रेषण प्रक्रिया

सम्प्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित है—
1. सम्प्रेषक या संवाददाता (Sender)
सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रारम्भी सम्प्रेषक से होता है। सम्प्रेषक जानकारी, आंकड़े, विचार, सूचना, निर्णय, भावना आदि को एक या अधिक व्यक्तियों के पास भेजता है।

2. सूचना या संदेश (Message)
सम्प्रेषण प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण चरण संदेश है। संवाद अर्थात 'क्या करना है' की तैयारी संवाददाता करता है। यह संवाद आदेश, निर्देश, सुझाव, शिकायत प्रशंसा, परिवेदना आदि किसी भी रूप में हो सकता है।

3. माध्यम (Medium) 
माध्यम से तात्पर्य उस स्वरुप से है जिसमें सूचना का संचरण होता है। सामान्यतः सम्प्रेषण को पहुंचाने के लिए मौखिक, लिखित, सांकेतिक, प्रतीकात्मक तथा दृश्य माध्यमों को अपनाया जाता है। परन्तु इसमें कौन-सा माध्यम श्रेष्ठ होगा यह संवाद की प्रकृति, संवाद प्राप्तकर्ता की अभिरुचि आदि पर निर्भर करता है।

4. संवाद प्राप्तकर्ता (Receiver) 
संवादप्राप्तकर्ता वह पक्षकार है जिसके पास संवाद भेजा जाता है। इसके अभाव में सम्प्रेषण प्रकिया अधूरी रहती है। अतः यह भी सम्प्रेषण प्रक्रिया का एक प्रमुख अंग है।

5. प्रतिक्रिया (Feedback) 
संवाद प्राप्तकर्ता द्वारा संवाद को प्राप्त करते ही निर्देशानुसार कार्य किया जाए तथा उसकी प्रतिक्रिया का ज्ञान संवाद भेजने वाले को कराया जाए, तो वह प्रतिक्रिया या प्रत्युत्तर कहलाता है। संवाद उस समय पूर्ण माना जाता है, जब संवाद को उसी अर्थ में समझा जाये जो अर्थ संवाद भेजने वाले का है।

सम्प्रेषण के प्रकार:

1. औपचारिक सम्प्रेषण (Formal Communication) :

जब संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य औपचारिक सम्बन्ध हो, तो उनके बीच संवादों के आदान-प्रदान को औपचारिक सम्प्रेषण कहा जाता है। औपचारिक सम्प्रेषण नियमों के अन्तर्गत और व्यवस्था में होता है। संगठन की आचार संहिता या नियमावली में उसका उल्लेख होता है। औपचारिक सम्प्रेषण प्रायः लिखित में होते है, ये स्थायी आदेश, वार्षिक प्रतिवेदन, पत्रिकाओं आदि के माध्यम से भेजे जाते हैं।

2. अनौपचारिक सम्प्रेषण (Informal Communication) :

अनौपचारिक सम्प्रेषण वह होता है जो संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के व्यक्तिगत सम्बन्धों पर आधारित होता है। अनौपचारिक सम्प्रेषण में संवादों का आदान-प्रदान संगठन चार्ट द्वारा निर्धारित मार्गों के अनुसार न होकर संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य पारस्पारेक सम्बन्धों के आधार पर होता है। इसमें हावभाव, नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कराना, क्रोधित होना आदि माध्यमों का उपयोग किया जाता है। अनौपचारिक सम्प्रेषण को ग्रेपवाइन (अंगूरी लता) के नाम से भी जाना जाता है।

3. मौखिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)

मौखिक सम्प्रेषण से आशय संवाददाता द्वारा कोई संवाद अथवा सूचना मुख से उच्चारण करके संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेषित करने से है। सम्प्रेषण का यह सर्वाधिक लोकप्रिय तथा परम्परागत तरीका है। लॉरेन्स ए. एप्पले के अनुसार मौखिक शब्दों द्वारा पारस्परिक सम्प्रेषण, सम्प्रेषण की सर्वश्रेष्ठ कला है। व्यावसायिक जगत में 75 प्रतिशत समय मौखिक सम्प्रेषण में ही व्यतीत होता है। मौखिक सम्प्रेषण के मुख्य साधन दो पक्षों के मध्य प्रत्यक्षवार्ता, टेलीफोन पर बात करना, रेडियो, फिल्में, साक्षात्कार, विचार गोष्ठियां, सम्मेलन या सभाएं प्रशिक्षण पाठ्यक्रम टेलीविजन, श्रम-संघ जोकि नियोजक और कर्मचारियों के मध्य सम्प्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, आदि है।

मौखिक सम्प्रेषण के लाभ: 
1. श्रेष्ठ नेतृत्व प्रदान करने में सहायक होता है। 
2. इस पद्धति से कागजी कार्यवाही कम होती है तो समय और धन दोनों की बचत होती है।

3. मौखिक सम्प्रेषण अधिकार प्रत्यायोजन को सरल बनाता है। 
4. मौखिक सम्प्रेषण में भावाभिव्यक्ति अधिक प्रभावशाली और सरलता से समझने योग्य होती है अतः सन्देहो का तुरन्त निवारण हो जाता है।

5. संगठन में समूह भावना का विकास होता है। 
6. मौखिक सम्प्रेषण लिखित सम्प्रेषण की तुलना में अधिक लचीला होता है। 
7. इस पद्धति से सन्देश तुरन्त प्रसारित होते हैं।

8. मौखिक सम्प्रेषण से संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता में मध्य पारस्परिक सदविश्वास में वृद्धि होती है।

मौखिक सम्प्रेषण के दोष :

1. मौखिक सम्प्रेषण के लिए दोनों पक्षों (संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता) का संवाद के प्रेषण के समय उपस्थित होना अनिवार्य होता है। अतः प्रत्यक्ष सम्पर्क के अभाव में सम्प्रेषण की यह विधि अनुपयुक्त है। 
2. मौखिक सम्प्रेषण में लिखित साक्ष्य का अभाव होता है, अतः कोई भी पक्ष अपनी स्थिति से विमुख हो सकता है जिससे वैधानिक कार्यवाही कार्यवाही में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। 
3. मौखिक सम्प्रेषण भावी सन्दर्भ के लिए अनुपयुक्त है।

4. मौखिक सम्प्रेषण में संवाददाता को संवाद के प्रेषण में प्रायः सोचने के लिए समय कम मिलता है। ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों के बीच तनाव या मन-मुटाव खड़े हो सकते हैं।

4. लिखित सम्प्रेषण (Written Communication):

लिखित सम्प्रेषण से तात्पर्य है कि संवाददाता द्वारा किसी संवाद को लिखित या मुद्रित स्वरूप में प्रेषित किया जाये। लिखित सम्प्रेषण हेतु पत्र-पत्रिकाएं पुस्तकें, पोस्टर, बुलेटिन, रिपोर्ट, आदेश पत्र, डायरियां, हैण्डबुक, मैनुअल, सुझाव पुस्तिकाओं, नियमावली, चार्ट, समाचार पत्र, संगठन अनुसूचियां आदि का प्रयोग किया जाता है।

लिखित सम्प्रेषण के लाभ:

1. लिखित सम्प्रेषण में दोनों पक्षों की प्रत्यक्ष उपस्थिति आवश्यक नहीं है।

2. लिखित सम्प्रेषण विस्तृत और जटिल सूचनाओं के लिए अधिक उपयुक्त है।

3. लिखित संदेश में स्पष्टता आ जाती है जिससे यह अधिक प्रभावशाली हो जाता है।

4. लिखित संवाद प्रमाण का काम करता है तथा भावी सन्दर्भ के लिए भी उसका उपयोग किया जा सकता है।

5 लिखित संदेश द्वारा कई व्यक्तियों को एक साथ सूचना दी जा सकती इस विधि में समय कम लगता है।

लिखित सम्प्रेषण के दोष :

1. इसमें श्रम, समय और धन का व्यय होता है यदि संदेश छोटा हो तो भी संदेश को लिखकर भेजने में अपव्यय होगा। 

2. इस पद्धति से प्रत्येक छोटी-बड़ी बात हमेशा लिखित रूप में ही प्रस्तुत करना सम्भव नहीं होता है।

3. लिखित सम्प्रेषण में प्रत्यक्ष सम्पर्क का अभाव होने के कारण सन्देश के सम्बन्ध में प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया का ज्ञान शीघ्र नहीं हो पाता है।।

4. लिखित सम्प्रेषण में संवाद को गोपनीय रखा कठिन होता है। 

5. लिखित सम्प्रेषण से कार्य विलम्बन से होते है सगठन में लालफीतशाही बढ़ती है, क्योंकि लिखित सूचना में अनेक औपचारिकताओं का पालन करना पड़ता है।

मौखिक और लिखित सम्प्रेषण विधियों में से कौन सी विधि श्रेष्ठ है, उसका निर्णय करना एक कठिन कार्य है। वास्तव में दोनों ही विधियों के अपने-अपने गुण तथा दोष हैं अतः संगठन में परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि कौनसी विधि को अपनाया जाये। 
हैमेन लिखते है कि-"यदि प्रबन्धक केवल एक विधि को चुनता है तो उसे गम्भीर असफलता का सामना करना होगा। मौखिक और लिखित सम्प्रेषण वास्तव में सम्प्रेषण प्रक्रिया की दो धाराएं है, एक सिक्के के दो पहलू है।"

5. सांकेतिक सम्प्रेषण :

सम्प्रेषण की इस विधि में न तो बोलना पड़ता है और न लिखना होता है, बल्कि सवादों का सम्प्रेषण संकेतों, हावभावों, इशारों आदि के द्वारा होता है। सांकेतिक सम्प्रेषण में, होठों पर अंगुली रख कर चुप रहने का इशारा, पीठ थपथपाना, आंखों से इशारा करना, अंगूठा उठाकर प्रोत्साहित करना, हंस कर या सिर हिलाकर प्रशंसा करना आदि सम्मिलित है।

सम्प्रेषण के प्रकार

अधोगामी सम्प्रेषण (Downward |Communication):

संगठन में उच्च स्तर से निम्न स्तर की और होने वाला संचार अधोगामी सम्प्रेषण कहलाता है जिसमें आदेश, निर्देश, परिपत्र इत्यादि सम्मिलित है। 

उर्ध्वगामी सम्प्रेषण (Upward Communication): संगठन में निम्न स्तरों से उच्च स्तरों की ओर किया जाने वाला संचार उर्ध्वगामी संचार कहलाता है। सामान्यतः आवेदन, प्रतिवेदन, सुझाव, तथ्यात्मक अभियुक्ति, सलाह इत्यादि इसके उदाहरण हैं।

समतलीय सम्प्रेषण (Equal Level Communication):

संगठन में एक ही स्तर के मध्यम होने वाला संचार समतलीय संचार कहलाता है। किसी अधिकारी द्वारा अपने समकक्ष अधिकारी को भेजा गया पत्र इसका उदाहरण है। उक्त तीनों सम्प्रेषण वस्तुतः आन्तरिक सम्प्रेषण के ही प्रकार हैं।

आन्तरिक सम्प्रेषण (Internal Communication) :

संगठन या विभाग के भीतर का संचार प्रवाह आन्तरिक संचार कहा जाता है। यह अधोगामी, उर्ध्वगामी अथवा समतलीय हो सकता है।

बाह्य सम्प्रेषण (External Communication) : किसी संगठन द्वारा अपने संगठन या उपक्रम से बाहर के किसी अन्य संगठन से किया गया संचार बाह्रय संचार की श्रेणी में आता हैं।

अच्छे सम्प्रेषण की आवश्यक शर्ते :
श्रेष्ठ संचार वह है जिसमें स्पष्टता, एक अर्थता, समय अनुकूलता एवं विशिष्टता हो तथा जो समझ में आने योग्य हो। 

टेरी ने अच्छे संचार की आठ शर्ते बताई है:

1. सर्वप्रथम संचार से सम्बन्धित विषय पर समस्त जानकारी एवं तथ्य जुटायें जाएं, जिससे की संचार परस्पर विरोधाभासी न रहे। 

2. जिससे संचार किया जाना है उसे विश्वास में लिया जाए। जिससे की वह उसे स्वीकार करने हेतु तत्पर रहें ।

3. संचार की भाषा एवं शब्दावली एक अर्थ वाली हों ।

4. संचार में अनुभव के आधार पर एक समान धरातल खोजा जाए, जिससे की सूचना प्राप्तकर्त्ता सूचना को समझ सकें।

5. संचार में सन्दर्भ और प्रसंग का ध्यान रखा जाए ।

6. सूचना प्राप्तकर्ता का ध्यान आकर्षित रखा जाए। 
7. संचार में उदाहरणों एवं रेखाचित्रों का प्रयोग किया जाए।

8. ऐसे संचार से बचा जाए जिससे प्रतिक्रिया देरी से प्राप्त हो।

संचार को 'प्रशासकीय संगठन की रक्त धारा' किसने कहा है?
1. मिलेट
2. फिफनर
3. एल.डी. व्हाइट
4. विलोबी
उत्तर- 1

'सम्प्रेषण समान विषयों पर मस्तिष्कों का मेल है।' उक्त कथन किसने कहा है?
1. हर्बर्ट साइमन
2. पीटर ड्रकर
3. कीथ डेविस
4. ऑडवे टीड 
उत्तर- 4

निम्न में से सम्प्रेषण प्रक्रिया का सही क्रम कौनसा है?
1. सम्प्रेषक, सूचना, संवाद प्राप्तकर्ता, प्रतिक्रिया, माध्यम
2. सम्प्रेषक, सूचना, माध्यम, संवाद प्राप्तकर्ता, प्रतिक्रिया
3. संवाद प्राप्तकर्ता, सम्प्रेषक, सूचना, प्रतिक्रया, माध्यम
4. सूचना, सम्प्रेषक, प्रतिक्रिया, माध्यम, संवाद प्राप्तकर्ता
उत्तर- 2

लिखित सम्प्रेषण के सम्बन्ध में कौनसा कथन सही नहीं है?
1. लिखित सम्प्रेषण से संदेश में स्पष्टता रहती है।
2. इसका साक्ष्य के रूप में उपयोग नहीं कर सकते हैं।
3. लिखित सम्प्रेषण में दोनों पक्षों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है।
4. लिखित सम्प्रेषण विस्तृत एवं जटिल सूचनाओं के लिए उपयुक्त है।
उत्तर- 4

ग्रेपवाइन (अंगूरी लता) संप्रेषण है?
1. औपचारिक
2. अनौपचारिक
3. ऊर्ध्वगामी
4. अधोगामी
उत्तर- 2
ग्रेप वाइन या अंगूरी लता सम्प्रेषण एक अनौपचारिक संप्रेषण का हिस्सा है।
अनौपचारिक संप्रेषण वह होता है जो संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होता है।
अनौपचारिक संप्रेषण में संवादों का आदान-प्रदान संगठन चार्ट द्वारा निर्धारित मार्गों के अनुसार न होकर संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य पारस्परिक संबंधों के आधार पर होता है।
इसमें हावभाव, नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कराना, क्रोधित होना आदि माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
यहां संप्रेषण की कोई नियत दिशा नहीं होती साथ ही यह औपचारिक रूप से परिभाषित संबंधों के कारण उत्पन्न नहीं होते हैं। यह मानव स्वभाव से स्वत: उत्पन्न एवं संबंध पर आधारित होते हैं। 

ऑडवे टीड की पुस्तकें

दि आर्ट ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन
एडमिनिस्ट्रेशन इट्स परपज एंड परफोरमेंस


प्रशासन विषयवस्तु के अनुसार एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होगा। यह कथन निम्न में से किसकी व्याख्या करता है?
1. प्रशासन का प्रबंधकीय दृष्टिकोण
2. प्रशासन का व्यापक दृष्टिकोण
3. प्रशासन का समग्र दृष्टिकोण
4. प्रशासन का संकीर्ण दृष्टिकोण
उत्तर— 3

2. POSDCORB शब्द किसने प्रयोग किया?
1. गुलिक व उर्विक
2. उर्विक
3. गुलिक
4. हेनरी फेयॉल
उत्तर— 3

निम्न में से किन्होंने प्रशासन के प्रबंधकीय दृष्टिकोण का समर्थन किया?
1. एल.डी. व्हाइट
2. साइमन
3. एल. गुलिक
4. स्मिथबर्ग व थॉम्पसन
अ. 1 और 2 
ब. 2 और 3
स. 3 और 4 
द. 2, 3 और 4
उत्तर— द
 

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