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शिव प्रसाद सिंह के 'अलग-अलग वैतरणी' उपन्यास का सारांश लिखिए?
Shiv prasad singh ke alag-alag-vaitarini-upanyas ka saransh likhiye
'अलग-अलग वैतरणी' उपन्यास का सारांश
alag-alag-vaitarini-upanyas ka saransh
- हिन्दी के उपन्यासकार शिव प्रसाद सिंह द्वारा रचित उपन्यास 'अलग-अलग वैतरणी' में भारतीय गांवों के प्रतिनिधि के रूप में 'करैता' गांव का अत्यन्त यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत किया गया है। सजीव ग्रामीण परिवेश की ठनक पहचानने के बहाने आजादी के बाद भारतीय जीवन की विसंगतियों, कठोर सच्चाइयों से सीधा साक्षात्कार करने की कोशिश इस उपन्यास में की गई है।
- स्वतंत्रता के बाद देश के नए गांव जमींदारी उन्मूलन से संदर्भित विकृतियों से युक्त होकर एक नया रूप धारण कर लेते हैं। जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद ग्रामीण जनता ने विशेषकर किसानों ने समझा था कि उनका भाग्य उदय होगा, जिन्दगी आराम से कटेगी। अत्याचार एवं अनाचार खत्म होंगे, लेकिन उनकी आशा-निराशा में बदल गयी। पहले जमींदार अत्याचार करते थे, लेकिन अब उनका स्थान छुटभइयों ने ले लिया है। जो पहले जमींदारों के बूटों से रौंदे जाते थे। अब छुटभैये गोल बनाकर अपने से कमजोरों, गरीबों को सताते हैं, लूटते हैं।
- पुलिस व्यवस्था में भी कोई बदलाव नहीं हुआ। भूतपूर्व जमींदार, छुटभैये, समाज के अगुवा, भ्रष्ट सरकारी अफसरों, व्यापारियों सबने मिलकर एक नहीं अनेक नरकों का निर्माण कर दिया है। ग्रामीण जीवन में एक नहीं अनेक वैतरणी बहने लगी है जिस प्रकार वैतरणी नदी कष्ट सूचक है। उसी प्रकार करैता गांव में भी अलग-अलग कष्ट एवं समस्याएं हैं जिन्हें पार करना अत्यंत कठिन है। गांव की इसी अवस्था का चित्रण इस उपन्यास में हुआ है।
- उपन्यास का कथानक करैता गांव की कहानी कहता है। जो गाजीपुर जनपद में स्थित हैं आजादी के बीस वर्ष हो गये हैं, फिर भी यह गांव अनेक परंपरागत रूढ़ियों से बंध है। करैता में असकामिनी देवीधाम में हर वर्ष मेला लगता है, जहां पर नि:संतान स्त्रियां पुत्र कामना हेतु आती है और मनौतियां मानती है। जैपाल गांव का एक सम्मानित व्यक्ति है वह छावनी में रहता है लेकिन उसका बेटा बुझारथ जिसमें बहुत से दुर्गुण है करैता में ही रहता है।
- बुझारथ की पत्नी कनिया अत्यन्त नेक धैर्यशाली एवं त्यागमयी है। परिवार के लिए उसका त्याग अकथनीय है।
- बुझारथ अपने पिता के कर्जदूत धरमू सिंह पर कर्ज न चुकाने का आरोप लगाकर उसकी सम्पत्ति कुर्क करने लगता है। लेकिन विपिन के सहयोग से धरमू सिंह की सम्पत्ति कुर्क होने से बच जाती है।
- इसमें तीन पात्र शशिकांत देवनाथ और विपिन पढ़े-लिखे युवक हैं। तीनों के अन्दर ग्राम विकास की भावना है। ये लोग करैता गांव में सुधार करने के लिए कटिबद्ध हैं। अन्त में तीनों के प्रयास विफल हो जाते हैं और वे गांव छोड़कर चले जाते हैं। ग्राम सुधार की सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है।
- गांव का एक चर्चित व्यक्ति जग्गन मिसिर जिसके बड़े भाई का स्वर्गवास हो गया है वह अपनी भाभी के साथ पति-पत्नी की तरह रहता है लेकिन इस बात का खुलासा नहीं करता।
- खलील मियां एक काश्तकार है बेटी की शादी में देवी चौधरी के यहां कुछ जमीन गिरवी रख देते हैं। देवी चौधरी उसकी जमीन को बेच देता है और बेईमानी पर उतर आता है। खलील मिया अपमान सह कर गांव छोड़कर चले जाते हैं।
- इस प्रकार करैता गांव विविध समस्याओं से ग्रस्त है। दबंग किस्म के व्यक्ति गांव में हावी है। गरीब व्यक्ति इनके शिकार है। गांव में इस कदर अव्यवस्था व्याप्त है कि गांव के अच्छे-अच्छे लोग शहर पलायन कर रहे हैं।
- 'अलग-अलग वैतरणी' मनुष्य के किसी न किसी रूप में निर्वासन की करुण कहानी बताता है। अपनी उच्च शिक्षा का उपयोग गांव की मिट्टी को देने के लिए उत्साह से विपिन की प्रतिक्रिया इस प्रकार है- ''मारो साले गांव को गोली। साल भर तक मैंने इस गांव में रहकर जान लिया है कि यहां किसी भले आदमी का रहना मुश्किल है। यह एक जीता-जागता नरक है, जिसमें वही आता है जिसके पुण्य समाप्त हो जाते हैं। चारों ओर कीचड़, बदबूदार नाबदान, जहरीली मक्खियां-इसके बीच भुखमरी, डरावनी हड्डियों के ढांचे, बीमारी से फूले पेट वाले छोकरे, घरों में बंद आपाद मस्तक डूबी औरत, जो एक-दूसरी को खुलेआम चौराहे पर नंगियाने में ही सारा सुख और खुशी पाती हैं, धुंधवाते मन के अपाहिज जैसे युवक, जो अंधेरी बन्द गलियों में बदफेली करने का मौका ढूंढते फिरते हैं, हारे-थके प्रौढ़ जो न गृहस्थी के जुएं को उतार पाते हैं, न उसमें उत्साह से जुट पाते हैं। मौत का इंतजार करते बुड्ढे अपने ही बेटे-बेटियों से उपेक्षित बिलबिलाते रहते हैं- यही है न हमारी जन्मभूमि करैता।''
- इस प्रकार विपिन ने जो नरक देखा, वह उससे दूर भागना चाहता है। इसमें इस बात का भी खुलासा किया गया है कि गांव में जो कुछ अच्छा है वह शहर चला जा रहा है। जग्गन मिसिर का यह कथन इस बात को पूरी तरह स्पष्ट कर देता है वे कहते हैं, ''हमारे गांवों में आजकल इकतरफा रास्ता खुला है। निर्यात। सिर्फ निर्यात। जो भी अच्छा है, काम का है, वह यहां से चला जाता है। अच्छा अनाज, दूध, घी, सब्जी जाती है। अच्छे मोटे—ताजे जानवर, गाय, बैल, भेंड़े-बकरे जाते हैं। हट्टे-कट्टे मजबूत आदमी जिनके बदन में ताकत है, देह में बल है, खींच लिये जाते हैं पल्टन में, पुलिस में, मलेटरी में, मिल में। फिर वैसे लोग, जिनके पास अक्ल हैं, पढ़े-लिखे हैं यहां कैसे रह जाएंगे? वे जाएंगे ही। जाना ही होगा।''
- 'अलग-अलग वैतरणी' का सारा वातावरण, अकाल, सूखा और चिलचिलाती धूप से भरा पड़ा है। यहां के मेले, त्यौहार, स्कूल, सामूहिक जीवन के अन्य माध्यम सब तेजी से अपनी जीवंतता और शान खोते जा रहे हैं। उपन्यास के माध्यम से विभिन्न समस्याओं को दिखाकर निश्चित ही उपन्यासकार गांवों की स्थिति में सुधार लाना चाहते थे क्योंकि यह धरती अपने वास्तविक स्वरूप में गांवों में रहती है। गांवों में रहने वाले लोग ही धरती से अन्न और फल-फूल पैदा करते हैं जिससे विश्व का भरण-पोषण होता है यदि गांव नष्ट होंगे तो विश्व स्वत: नष्ट हो जायेगा। अत: गांवों की और ग्रामीण सभ्यता की रक्षा होनी ही चाहिए। गांवों में परिवर्तन का प्रयत्न आवश्यक है इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत सुलभ हो तथा गांवों के विकास से सम्बन्धित योजनायें क्रियान्वित की जाय।
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