आदिकालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियां
aadikalin-hindi-sahitya-ki-pravrittiyan हिन्दी साहित्य में किसी काल की प्रवृत्तियां उसके उपलब्ध साहित्य सामग्री के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। उस समय की साहित्यिक कृतियों का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि इस काल के साहित्य की क्या विशेषताएं रही हैं। आदिकाल भाषा की दृष्टि से संक्रान्ति काल रहा है और भावों की दृष्टि से आध्यात्मिक तथा चरित्र प्रधान काव्य एवं बाद में वीररस व शृंगारिक रस से युक्त रहा। सातवीं शताब्दी का काल अपभ्रंश साहित्य का अभ्युदय काल था, किन्तु अपभ्रंश में भी धीरे-धीरे अवहट्ठ या पुरानी हिंदी का समावेश हो रहा था, जिसके कारण यह परिनिष्ठित अपभ्रंश या पुरानी हिंदी का रूप धारण कर रही थी फिर भी साहित्यिक प्रवृत्तियां अपना रूप लिए हुए थीं। अतः प्रमुख प्रवृत्तियों का निरूपण करते हैं तो अनेक प्रवृत्तियां सामने आती हैं- 1. वीरगाथात्मक काव्य रचनाएं VirGathatmak Kavya Rachanaen:- आदिकालीन साहित्य में वीरगाथाओं का विशेष प्रचलनथा,जिसमें कवि अपने आश्रयदाताओं की वीरता साहस, शौर्य एवं पराक्रम को अतिरंजित बनाकर प्रस्तुत करते थे। युद्धों का सजीव चित्रण किया जाता था। इन युद्धों ...